SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org करलक्खणं मणिबंधसे प्रकट होकर जो रेखा मध्यम अंगुलि तक गयी हो को धनसमृद्ध, देशप्रसिद्ध आचार्य (उपदेशक ) बनाती है । ( १७ ) अक्खंडा अप्फुडिया पल्लवा यया विणा य । इका वि उडरेहा सहस्सजणपोसिणी भणिया || अखण्डा अस्फोटिता अपल्लवा आयता अच्छिन्ना च । एकाषि, ऊर्ध्वरेखा सहस्रजनपोषिणी भणिता || एक ही ऊर्ध्वरेखा. यदि वह अखंड हो, फूटी न हो, उसमें शाखायें न हो, चौड़ी हो और छिन्न न हो, तो हजार मनुष्योंके भरणपोषणकी योग्यता रखती है । ( १८ ) विप्पाणं वेदकरी रजकरी खत्तिया सा भणिया । वेसा अत्थरी सुक्खकरी सुद्दलोचाणं ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विप्राणां वेदकरी राज्यकरी क्षत्रियाणां सा भणिता । वैश्यानाम् अर्थकरी सौख्यकरी शूद्रलोकानाम् ॥ यही रेखा विप्रोंको वेदज्ञाता बनानेवाली है, क्षत्रियोंको राज्य दिलानेवाली है, वैश्योंको धनका लाभ करानेवाली है और शूद्रलोगोंको सुख उपजानेवाली कही गयी है । ( १९ ) मणिबंधा पडा संपत्तमणामिअंगुलिं रेहा । सा कुणइ सत्थवाहं नरवइसयपुज्जियं पुरिसं ॥ मणिबन्धात् प्रकटा सम्प्राप्ता अनामिकाङ्गुलिं रेखा । सा करोति सार्थवाहं नरपतिशतपूजितं पुरुषम् ॥ मणिबंधसे प्रकट होकर जो रेखा अनामिका तक जाती है वह पुरुषको सार्थवाह, अर्थात् किसी दलका नायक (अगुआ), बनाती है जिसकी सैकड़ों नरेश पूजा करते हैं । १७- १ प्रतौ 'पोसणी' इति पाठः । २ प्रतौ 'पोषणा' इति पाठः । For Private and Personal Use Only
SR No.020437
Book TitleKarlakkhan Samudrik Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrafullakumar Modi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages44
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy