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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करलक्खणं भ होकर जो रेखा अंगूठा और प्रदेशिनोके बीच तक उरुषको शास्त्रका ज्ञाता और विज्ञानमें कुशल बनाती है । कुलरेखाविषये गाथायुग्मम्मणिबंधात्रो पयडा पएसिणी जाव जाइ जस रहा। बहुबंधुसमाइण्णं कुलवंसं णिदिसे तस्स ॥ मणिबन्धात् प्रकटा प्रदेशिनी यावत्' याति यस्य रेखा । बहुबन्धुसमाकीर्णं कुलवंशं निर्दिशेत् तस्य ।। मणिबंधसे प्रकट होकर जिसकी रेखा प्रदेशिनी तक जाती है उसकी वह रेखा बहुतसे बंधुओंसे युक्त कुल और वंशकी द्योतक है । ( १५ ) दीहाइ जाण दीहं कुलवंस मडहिनं मडहिआए। वुच्छिण्णाए किरणं जाणसु भिण्णं च भिषणाए । दीर्घया जानीहि दीर्घ कुलवंशं लघुकं लघुकया । व्युच्छिन्नया छिन्नं जानीहि भिन्नं च भिन्नया । यदि यह रेखा दीर्घ हो तो उसका कुल और वंश भी दीर्घ ( अर्थात् पुरानी परम्परा वाला ) जानो। यदि रेखा छोटी हो तो कुल और वंश भी ओछ जानो। और यदि यह रेखा छिन्न हो तो कुलवंश भी व्युच्छिन्न ( विनष्ट ) और भिन्न हो तो भिन्न (विभाजित ) जानो।। धनविषये मणिबंधात्रो पयडा संपत्ता मज्झिमंगुलिं रेहा। सा गुणइ धणसमिद्धं देसक्खायं तमायरियं ॥ मणिबन्धात् प्रकटा सम्प्राप्ता मध्याङ्गुलिं रेखा । सा करोति धनसमृद्धं देशख्यातं तमाचार्यम् ॥ १४. १ प्रतौ 'प्रदेशिनी या च' इति पाठः । २ प्रतौ 'निर्देशयति' इति पाठः। For Private and Personal Use Only
SR No.020437
Book TitleKarlakkhan Samudrik Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrafullakumar Modi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages44
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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