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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करलक्खणं मधुषिङ्गलाभिः सुखिताः अविनष्टव्रताः भवन्ति रक्ताभिः । सूक्ष्माभिः मेधावी सुभगाश्च समत्वमूलाभिः ।।' यदि इन रेखाओंका रंग मधु ( शहद ) के समान पिंगल (लाल कत्था रंग) का हो तो पुरुष सुखी होते हैं, यदि रक्तके समान लाल हों तो उनका कभी व्रत भंग नहीं होता; यदि सूक्ष्म हों तो वे बुद्धिमान होते हैं; तथा यदि उनकी मूल सम हो तो वे सुभग अर्थात् स्वरूपवान् और भाग्यवान् होते हैं। मणिबंधके स्वरूपका फल वराहमिहिरने इस प्रकार बताया है-जिनका मणिबंध ( कलाई ) गठा हुआ और दृढ हो वे राजा होते हैं, ढीला होनेसे हाथ काटा जाता है तथा शब्द उत्पन्न करने वाला हो तो पुरुष दरिद्री होता है । __ (बृहत्संहिता ६७, ३८) तिप्परिखित्ता पयडा जवमाला होइ जस्स मणिबंधे । सो होइ धणाइएणो खत्तिय पुण पत्थिवो होइ॥ त्रिपरिक्षिप्ता प्रकटा यवमाला भवति यस्य मणिबन्धे । स भवति धनाकीर्णः क्षत्रियः पुनः पार्थिवः भवति ॥ जिसके मणिबंधमें यवमालाकी तीन धाराएं हों वह धनसे परिपूर्ण होता है और यदि वह क्षत्रिय हो तो राजा बनता है। . ( १० ) दुप्परिखित्ता रम्मा जवमाला होइ जस्स मणिबंधे। सो हवइ रायमंती विउलमइ ईसरो होई ॥ द्विपरिक्षिप्ता रम्या यवमाला भवति यस्य मणिबन्धे । स भवति राजमन्त्री विपुलमतिः ईश्वरः भवति ॥ - जिसके मणिबंधमें यवमालाकी दो धाराएं हों वह राजमंत्री होता है, और उसमें यदि विशाल बुद्धि हुई तो वह राजा भी बनता है। ( ११ ) इक्कपरिक्खिता पुण जवमाला दीसए सुमणिबंधे । सिट्ठी धणेसरो होइ तह य जणपुज्जियो पुरिसो॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020437
Book TitleKarlakkhan Samudrik Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrafullakumar Modi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages44
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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