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करलक्खणं
यदि कनिष्ठिका और अनामिकामें सघन अन्तर हो तो बुढ़ापेमें सुख होवे । यदि सभी अंगुलियां सघन हों तो मनुष्य सदा सुखी और धन-सम्पन्न होता है।
अगुल्यन्तरफले पर्वणां फलम्सम्मसंगुलिपव्वो पुरिसो धणवं सुही सया होइ। जइ सो अमंसपव्वो ता तस्स सिरी ण संभवइ ॥
समांसाङ्गुलिपर्वा पुरुषः धनवान् सुखी सदा भवति ।
यदि स अमांसपर्वा तर्हि तस्य श्रीः न संभवति ॥ जिस पुरुषकी अंगुलियोंके पर्व मांसल हों वह धनवान् और सदा सुखी होता है। यदि उसके पर्व मांसल न हों तो उसके धन नहीं होता।
वराहमिहिरके अनुसार जिनकी अंगुलियोंके पर्व ( पोर ) लम्बे हों वे सौभाग्यवान् और दीर्घायु होते हैं । ( बृहत्संहिता ६७, ४२ )
मणिबन्धविषये गाथापञ्चकम्धणकणगरयणजुत्तो मणिबंधे जस्स तिरिण रेहायो। . बाहरणविविहभागी पच्छा भदं च सो लहइ ॥
धनकनकरत्नयुक्तः मणिबन्धे यस्य तिस्रः रेखाः ।
आभरणविविधभागी पश्चात् भद्रं च स लभते ॥ जिसके मणिबंध ( कलाई ) पर तीन रेखाएं हों उसे धान्य, सुवर्ण और रत्नोंकी प्राप्ति होती है, उसे नाना प्रकारके आभूषणोंका उपभोग मिलता है तथा अन्तमें उसका कल्याण होता है।
( ८ ) महुपिंगलाहि सुहिया अविणवया हवंति रत्ताहिं। सुहमाहिं मेहावी सुभगा य समत्तमूलाहि ॥
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