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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कामघट कथानकम अंजन से ऊँटनी करके रख छोड़ी है और प्रति दिन वह राक्षसी मेरा आदर-सत्कार करने के लिए यहां आती है, इस लिए, तुम छिप जाओ, क्योंकि वह राक्षसी अभी आयगी। फिर एक समय मैंने उस राक्षसी को पूछा-हे मां, मैं बन समान इस महल में भी अकेली क्या करूं ? इसलिए, तुम यदि मुझे मार डालती तो बहुत अच्छा होता। तब उसने कहा-यहि तुम्हारे योग्य बर मिलेगा, तो तुमको उसे दे डालूंगी। हे सत्पुरुष, उसने पहले मुझ से ऐसा कहा है। अब, अभी उसके आने का समय है, और यह शायद मुझे तुझको दे डाले, तो तुम इस राक्षसी के पास से आकाश गामिनी विद्या, प्रभाव वाली खाट, बेशकीमती दिव्य रत्नों की गांठ और प्रभाव वाली उजला-लाल करवीर की कंबिका (चाबुक ) इतनी चीजें कंगन खोलने के समय मांगना। इसतरह उसके कथन के संकेत (इशारा) को ( मन में) रखकर फिर उसको काला अंजन से ऊँटनी बनाकर मंत्री छिपकर बैठ गया। इधर मनुष्य को खाती हूं, ऐसी बोलती हुई वह राक्षसी आ गई और उसने उजला अंजन से ऊँटनी को लड़की बना डाली। फिर उस लड़कीने उस राक्षसी से बातचीत करती हुई अपने योग्य बर ( भावी पति ) की याचना की। तब राक्षसीने कहा-कहीं भी तुम्हारे लायक बर देखकर उसको तुम्हें दे दंगी। __ यदुक्तं-- कहा भी हैमूर्ख-निर्धन-दूरस्थ . - शूर-मोक्षाभिलाषिणाम् । त्रिगुणाधिकवर्षाणां, चापि देया न कन्यका ॥ ५६ ॥ मूर्ख को, दरिद्र को, दूर में रहने वालों को, शूर को, मोक्ष के अभिलाषी को और तीन गुना से अधिक उमर वालों को लड़की नहीं देनी चाहिए ।। ५६ ।। एवं चऔर इसी तरहबधिर-क्लीव-मूकानां, खंजान्ध-जडचेतसाम् । सहसा ' घात-कर्तृणां, नूनं देया न कन्यका ॥ ६० ॥ बहरे को, गूंगे को, नपुंसक को, लंगड़े को, अंधे को और जड़ बुद्धि वाले को और बिना विचारे हिंसक को, लड़की नहीं देनी चाहिए ।। ६० ।। अन्यच्चापिऔर भी For Private And Personal Use Only
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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