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तथा च :
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( संस्कृत छाया ) -
ॐ नमः अद्द्भ्यः, नमः सिद्धेभ्यः नमः आचार्यभ्यः, नमः उपाध्यायेभ्यः, नमः लोके सर्वसाधुभ्यः ।
नवकारपरममंतो,
( संस्कृत छाया ) -
"
अरिहंतों (जिनेश्वरों ) को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो, आचार्यों को नमस्कार हो,
उपाध्यायों को नमस्कार हो, लोक में सब साधुओं को नमस्कार हो ।
अन्यच्च :
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और इसीतरह
एसो मंगलनिलओ, भवविलओ सव्वसन्तिजणओ य । चिंतिअमत्तो सुहं देइ ॥ ५४ ॥
एष मंगल-निलयो भवविलयः सर्वशान्तिजनकश्च ।
नवकार - परम - मंत्रः चिन्तितमात्रः सुखं दत्ते ॥ ५४ ॥
श्री कामघट कथानकम्
यह महा प्राभाविक नमस्कार परम मंत्र है, मंगल का घर है, संसार से मुक्त कराने वाला है और सभी सुख-शान्ति करने वाला है, तथा स्मरण मात्र से सुख देता है ।। ५४ ॥
और भी :
एसो चिन्तामणी अपुव्वो अ ।
अप्पुव्वो कल्पतरू, जो कायइ सय कालं, सो पावइ सिवसुहं विउलं ॥ ५५ ॥
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( संस्कृत छाया ) -
अपूर्व:
कल्पतरुः एष चिन्तामणिः अपूर्वश्च ।
यो ध्यायति सर्वकालं स प्राप्नोति शिवसुखं विपुलम् ।। ५५ ।।