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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८२ तथा च : www.kobatirth.org ( संस्कृत छाया ) - ॐ नमः अद्द्भ्यः, नमः सिद्धेभ्यः नमः आचार्यभ्यः, नमः उपाध्यायेभ्यः, नमः लोके सर्वसाधुभ्यः । नवकारपरममंतो, ( संस्कृत छाया ) - " अरिहंतों (जिनेश्वरों ) को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो, आचार्यों को नमस्कार हो, उपाध्यायों को नमस्कार हो, लोक में सब साधुओं को नमस्कार हो । अन्यच्च : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और इसीतरह एसो मंगलनिलओ, भवविलओ सव्वसन्तिजणओ य । चिंतिअमत्तो सुहं देइ ॥ ५४ ॥ एष मंगल-निलयो भवविलयः सर्वशान्तिजनकश्च । नवकार - परम - मंत्रः चिन्तितमात्रः सुखं दत्ते ॥ ५४ ॥ श्री कामघट कथानकम् यह महा प्राभाविक नमस्कार परम मंत्र है, मंगल का घर है, संसार से मुक्त कराने वाला है और सभी सुख-शान्ति करने वाला है, तथा स्मरण मात्र से सुख देता है ।। ५४ ॥ और भी : एसो चिन्तामणी अपुव्वो अ । अप्पुव्वो कल्पतरू, जो कायइ सय कालं, सो पावइ सिवसुहं विउलं ॥ ५५ ॥ For Private And Personal Use Only ( संस्कृत छाया ) - अपूर्व: कल्पतरुः एष चिन्तामणिः अपूर्वश्च । यो ध्यायति सर्वकालं स प्राप्नोति शिवसुखं विपुलम् ।। ५५ ।।
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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