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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कामघट कथानक फ्टहः स्पृष्टः। ततोऽमात्येन नृपसभायां गत्वा तानि ताम्रपत्राणि वाचितानि यथा—यत्रैतानि पत्राणि निःसृतानि, ततः पूर्वस्यां दिशि दशहस्तमितं गत्वा.कटिप्रमाणं पृथिवीखनने सति तत्रैका महती शिला समेण्यति, तस्या अधश्च दीनाराणां दशलक्षाणि सन्ति, तन्निशम्य सर्वेषां चमत्कारोऽभूत् । कौतुकालोकोत्कण्ठितमानसेन राज्ञोक्तं तर्हि संप्रत्येव तत्र गत्वा विलोक्यते, ततः सर्वजनपरिवृतो राजा तत्र गतः। ताम्रपत्रोक्तविधिश्च तेन कारितः, दशलक्षाणि सुवर्णानां निःसृतानिः, सर्वेषां महान् हर्षों जातो, राज्ञापि मन्त्रिणः प्रशंसा कृता, यदहो ! कीदृशं ज्ञानस्य माहात्म्यमिति । बाद में एक समय राजा ने उस नगर में तालाब खुदवाना शुरु किया, फिर कुछ दिनों में वहां ताम्र पत्र का लेख निकला। मजदूरों ने राजा को वह लेख दे दिया। राजाने भी उस लेख ( ताम्र पत्र लिपि ) को पढ़ने के लिए पण्डितों को दिया। किन्तु उस ताम्र पत्र में दूसरी लिपि ( अक्षर ) के होने से कोई भी उसे नहीं पढ़ सका। तब कौतुक प्रिय ( उस लेख से दिलचस्पी लेने वाला ) राजाने ढिढोरा पिटवायाकि-जो कोई भी इन अक्षरों को पढ़ लेगा, उस व्यक्ति को राजा अपनी लड़की और अपना आधा राज्य देगा, इसतरह बजता हुआ ढोल (ढिढ़ोरा) मंत्रो के घर के पास आया तब मंत्रीने उस ढोल को स्पर्श कर दिया। फिर मंत्रीने राजा की सभा में जाकर उन ताम्र पत्र के अक्षरों को पढ़ा, जैसे"जहां ये ताम्र-पत्र निकले हैं उस से दश हाथ पूरब कमर के बराबर भूमि को खोदने पर वहां एक बड़ी शिला मिलेगी और उस शिला के नीचे दश लाख सोना-मोहर है" यह सुनकर सब के सब आश्चर्य युक्त हुए। इस आश्चर्य को देखने के लिए उत्कण्ठित मन वाला राजाने कहा--तो अभी वहां चलकर देखा जाय, फिर सभी लोगों के साथ राजा वहां गया। और ताम्र पत्र में कही हुई विधि ( क्रिया खोदना ) भी कर वाई । दश लाख सुवर्ण के मोहर निकले, सबों को बड़ा हर्ष हुआ। राजाने भी मंत्री की प्रशंसा की कि-अरे, ज्ञान का माहात्म्य कैसा है ।। यदुक्तंकहा भी हैविद्वत्त्वञ्च नृपत्वं च, नैव तुल्यं कदाचन । खदेशे पूज्यते राजा, विद्वान् सर्वत्र पूज्यते ॥ २६ ॥ पण्डिताई और राजापन कभी भी समान नहीं है, क्योंकि, राजा अपना देश में ही पूजा जाता है और विद्वान् सभी जगह पूजे जाते हैं अर्थात् राजा से पण्डित का पलड़ा भारी है ।। २६ ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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