SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कामघट कथानकम www.kobatirth.org सुविशुद्ध-शीलयुक्तः प्राोति कीर्ति यशश्च इहलोके । सर्व-जन-वल्लभश्चैव शुभ-गति-भागी च परलोके ॥ २६ ॥ अखण्ड ब्रह्मचारी इस लोक में यश प्रतिष्ठा और कीर्त्ति को प्राप्त करता है और सब का प्रिय होकर परलोक में मोक्ष का भागी होता है ।। २६ ॥ देव-दानव-गंधव्वा, बंभयारिं दुक्करं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जक्खरक्खस जे नमसंति, यक्ष - राक्षस- किन्नराः । देव-दानव - गंधर्वा ब्रह्मचारिणं नमस्यंति दुष्करं यत् कुर्वन्ति तत् ॥ २७ ॥ - किन्नरा ! कति तं ॥ २७ ॥ जिस लिए, ब्रह्मचारी अत्यन्त दुष्कर ( कठिन ) ब्रह्मचर्य व्रत ( तपस्या ) करते हैं, इस लिए ब्रह्मचारी को देवता, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर ( देवयोनि के लोग ) भी बन्दना करते हैं ॥। २७ ॥ अपि च और भी वह्निस्तस्य जलायते जलनिधिः कुल्यायते तत्क्षणात्, मेरुः स्वल्पशिलायते मृगपतिः सद्यः कुरंगा | व्यालो विष - रसः शीलं ६६ माल्यगणायते स्यांगेऽखिल-लोक-वल्लभ-तमं समुन्मीलति ॥ २८ ॥ जिस व्यक्ति के शरीर में समस्त लोक का अत्यन्त प्रिय शील ( ब्रह्मचर्य ) चमकता है, उसके ( ब्रह्मचर्य के ) प्रताप से अग्नि जल के जैसी हो जाती है, समुद्र एक छोटी क्यारी का जैसा, मेरु पर्वत छोटी शिला की तरह, शेर हरिण की तरह, सर्प माला की तरह और विष अमृत की तरह हो जाता है ।। २८ ॥ For Private And Personal Use Only पीयूष वर्षायते अथैकदा राज्ञा तन्नगरे तटाकं खानयितुं प्रारब्धम् । ततः कियद्दवसैर्लिखितताम्रपत्राणि निःसृतानि, जनैश्च राज्ञे समर्पितानि । राज्ञापि तत्र लिखितलेखपरिवाचनाय तानि पण्डितेभ्यः समर्पितानि, किन्तु तत्र लिप्यन्तरसद्भावात्कोऽपि तामि चाचयितुं न शक्नोति स्म । तदा कौतुकप्रियेण राज्ञा पटहो वादितो यथा - यः कोऽप्यमून्यक्षराणि वाचयिष्यति तस्य राजा स्वीयकन्यामर्द्धराज्यं च दास्यतीति वाद्यमानः पटहः क्रमेण मन्त्रिगृहसमीपमागतस्तदा मन्त्रिणा स
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy