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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६३ श्री कामघट कथानकम धिकारी वर्तते स यदि केनचिदप्युपायेनास्माकं गृहे समागच्छेत्तर्हि स मुख्यत्वान्मे बहुधनं दत्त्वा सम्यक सन्तोषयेद् नृलस्नेहत्वादिति विचित्य तन्मनश्चालनाय सा षोडशभृङ्गारान् व्यधात् । इसतरह वह सेठ विषय में फंसा हुआ बहुत धन बरबाद करता हुआ वेश्या के घर में रहता था । अनन्तर एक समय वह वेश्या अपने मन में ऐसा विचार करने लगी- कि - यदि इस सेठ का मुनीम धर्मबुद्धि नाम का जो सभी व्यापारों का अधिकारी (मालिक) है वह किसी उपाय से मेरे घर पर आता तो वह मुखिया ( व्यापार का प्रधान ) होने से मुझे बहुत धन देकर नया स्नेह होने के कारण अच्छी तरह संतुष्ट करता, यह विचार कर उस मंत्री ( मुनीम ) के मन को चलायमान करने ( लुभाने ) के लिए वह वेश्या सोलह शृङ्गारों को सजने लगी यथा- जैसे : आदौ मज्जन- चारु- चीर-तिलकं नासा - मौक्तिक हार - पुष्प-निकरं अंगे चन्दनचर्चितं कुच-मणिः ताम्बूलं कर-कंकणं चतुरता नेत्रांजनं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'कुण्डलं, कारवन्नूपुरम् | घंटिका, षोडश ॥ १८ ॥ क्षुद्रावली शृङ्गारकाः प्रथम अच्छी तरह स्नान करना, फिर उत्तम कपड़ा पहनना, तिलक ( कपाल में बिन्दी ) करना, आखों में काजल करना, कानों में कुण्डल पहनना, नाक में नासामणि ( बुलकी ) धारण करना, गले में हार, माथा के जूड़े ( केस बन्ध ) पर फूलों के गुच्छे लगाना, पैरों में नूपुर ( पांवजेब - पायल ) पहनना, अंग में चन्दन का लेप करना, कुचमणि ( स्तनों को ऊंचे-खड़े रखने का वस्तुविशेष-या वस्त्र विशेष- चूचकस ) धारण करना, करधनी धारण करना, घंटिका- कमर कस धारण करना, पान खाना, हाथों में कंगन पहनना और बोलने में चतुराई- निपुणता ( कोमल-मीठी मुस्कुराहट के साथ बोलना ) ये सोलह शृङ्गार कामिनियों के हैं ॥ १८ ॥ एभिः शोभनशृङ्गारैः स्वदेहं साक्षात्स्वर्वेश्येव विधाय कपटनाट्यैकपटुः कट्या सिंह, वेण्या शेषनागं, मुखेन मृगांक, गत्या गजं, अक्ष्णा मृगीं, स्वसुन्दररूपेण रतिञ्च पराजयमाना, परितः कटाक्षवाणान् विक्षिपन्ती, भ्रमरावलीसमालका भ्रूधरा कामुकजनप्राणान् कामवाणेन विध्यन्ती स्वर्णरेखाशोभितदन्तावलिका कृतवक्रम्मुखी करशाखायां परिहितमुद्रिकां मुहुर्मुहुः प्रपश्यन्ती, For Private And Personal Use Only
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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