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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६२ मदिराया कुरुते www.kobatirth.org गुणज्येष्ठा, महिला दृष्टमात्रापि, शराब से गुण में बड़ी ( शराब की बड़ी बहिन ) कामिनी दोनों लोक में विरोध कराने वाली है, क्योंकि, मदमाती सुन्दरी देखने मात्र से ही लोगों को प्रायः पागल बना देती है ।। १६ ।। कहा भी है अपि च और भी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोक- द्वय - विरोधिनी । ग्रथिलं " जे मुनि ज्ञान निधान, मृगनैनी विधु-मुख निरखि । विकल होत हरियान, नारि विश्व माया प्रगट " ॥ श्री कामघट कथानकम् "बुधि-बल- शील- सत्य सच मीना वंशी सम तिय कहहिं प्रवीना " जनम् ॥ १६ ॥ सम-रस- रभसावेग-गाहे गभीर तावद्धीरोऽतिवीरः स्तावद्ध ढोऽसौ श्रुति- मुख-गदिते पंडितोऽप्यत्र तावत् । तावल्लज्जा सपर्या मनन-निपुणता योग वासिष्ट - निष्ठा, यावत्सस्मेर - नारी - नयन- तट-गतापांगभल्ली न लग्ना ॥ १७ ॥ मानव तबतक संग्राम में हर्ष के साथ तेजी से धीर और वीर ( बहादुर ) रहता है, धर्म में तबतक पक्का और गहरा विचार वाला रहता है और शास्त्रों में कहे गए बातों में पण्डित भी तभीतक रहता है, तभीतक लाज, पूजा पाठ, ज्ञान-ध्यान में कुशल रहता है तथा योग वासिष्ठ ( योग शास्त्र ) में निष्ठा (आस्था) वाला रहता है, जबतक मुस्कराती हुई मदमाती सुन्दरियों के चंचल आखों के कटाक्ष रूपी भाले ( चंचल चितवन तिरछी नजरें ) उसको नहीं लगते ।। १७ ॥ कहा भी है For Private And Personal Use Only एवं स श्रेष्ठी विषयासक्तत्वाद्वहु धनव्ययं कुर्वन् वारांगनागृहे तिष्ठति स्म । अथैकदा सा वारांगना मनस्येवं विचिन्तयामास - यद्यस्य वणिजो मुनीमाख्यो यो धर्मबुद्धिनामा सर्वव्यापारा
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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