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श्री कामघट कथानकम
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यतःक्योंकिवयोवृद्धास्तपोवृद्धाः, ये च वृद्धा बहु-श्रुताः । सर्वे ते धन-वृद्धानां, द्वारे तिष्ठन्ति किंकराः ॥ ५ ॥
जो उमर में बूढ़े हैं, तपस्या में बूढ़े हैं और शास्त्रज्ञ में बूढ़े हैं वे सब धन में बूढ़े ( महाधनी ) लोगों के द्वार पर किंकर होकर रहते हैं ॥५॥
अपि चऔर भीयस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः, स पण्डितः स श्रुतवान् गुणज्ञः । स एव वक्ता स च दर्शनीयः, सर्वे गुणाः
काञ्चनमाश्रयन्ते ॥ ६॥
जिसके पास धन है, वही आदमी कुलीन (खानदानी) है। वही (धन वाला ही) पण्डित है, वही शास्त्रवेत्ता है, वही गुणी है, वही वक्ता है और वही दर्शन करने योग्य है, क्योंकि सारे गुण काञ्चन (धन-दौलत ) के ही सहारा लेते हैं ।। ६ ।।
इतो मन्त्रिणा सर्वलोकेभ्यो द्रव्यादानानन्तरं वाहने समारूढः सागरदत्तो व्यवहारी दृष्टः । तेन सोऽपि दानाय जलमध्ये कियद् दूरं गत्वा वाहने समारुह्य तस्य श्रष्टिनः पार्चे दानं याचितवान् । व्यवहारिणापि तद्धर्मप्रभावेण तस्मै यथेष्टं दानं दत्त, मन्त्रिणापि शीघ्रमेव गृहीतम् ।
इधर मंत्रीने सब लोगों को द्रव्य दान देने के बाद सवारी पर चढ़ा हुआ सागरदत्त नाम के व्यापारी को देखा। इससे वह मंत्री दान के लिए जल के बीच में कुछ दूर जाकर सवारी पर चढ़ कर उस सेठ के पास दान मांगा। उस व्यापारी सेठने भी उसके धर्म के प्रभाव से उसको पूरा दान दिया, मंत्रीने भी शीघ्र ले लिया
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