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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कामघट कथानकम् इस तरह कहकर मंत्री दूसरे देश को चला। उसके बाद कुछ दूर मार्ग में जाते हुए उसको रात्रि के समय में जंगल में आए हुए उसके सामने भूख से व्याकुल होकर "खाउंगा-खाउंगा" ऐसा बोलता हुआ एक राक्षस मिला। तब मंत्री ने अपनी आपत्ति ( आफत ) विचार कर उसको देखते ही खूब जोर से पुकारा-मामाजी, आपको मेरा प्रणाम हो। इस तरह मंत्री की बात को सुनकर वह ( राक्षस ) कहता है - हे श्रेष्ठ पुरुष, अपनी इच्छा से तुम मुझे “मामा, मामा" मत कहो। यदि फिर बोलोगे ही तो भी मैं तुमको अवश्य ही खा जाउंगा, क्योंकि, मैं सात दिनों से भूखा हूं। इस लिए अभी धर्म, अधर्म दया आदि के विवेक से व्याकुल-विकल ( शून्य ) जैसा-तैसा अपने पेट को पूरा करूंगा ही। तथा च क्यों कि, कहा हैबुभुक्षितः किं न करोति पापं ?, क्षीणा नरा निष्करुणा भवन्ति । आख्याहि भद्रे ! प्रियदर्शनस्य, न गंगदत्तः पुनरेति कूपम् ॥ २६ ॥ भूखा जीव कौन सा पाप नहीं करता ? अर्थात् भूखा सभी तरह का पाप करता है। निर्बल और निर्धन मनुष्य निर्दयी होते हैं। सो हे भद्र, प्रियदर्शन को कह दो कि-गंगदत्त फिर अब कूप में नहीं आ सकता है ।। २६ ।। तथा चऔर इसी तरहलज्जामुज्झति सेवते च कुजनं दीनं वचो भाषते, कृत्याकृत्यविवेकमाश्रयति नो नो प्रेक्षते खां रतिम् । भंडत्वं विदधाति नर्तनकलाभ्यासं समभ्यस्यति, दुष्पूरोदरपूरणव्यतिकरे किं किं न कुर्याज्जनः ? ॥ ३० ॥ लज्जा को छोड़ देता है, कुजन की सेवा करता है, दीन वचन बोलता है, कार्य और अकार्य का ज्ञान नहीं रखता है, अपने प्रेम (सद्भाव ) को नहीं देखता है, भडुये का काम करता है और नाचना-कूदना आदि का अभ्यास करता है ( यह सब मनुष्य पापी पेट के लिए ही करता है ) सो दुःख से पूरा होने लायक डेर-पूर्ति की बात में प्राणी क्या क्या नहीं करता ? अर्थात् सब कुछ करता है ॥ ३०॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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