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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ भी कामघट कथानकम् पहले इस जन्म में माता की कुक्षि में गर्भ में रहने से दुःख होता है, फिर बचपन में पेशाब-टट्टी से लिपटाया हुआ शरीर और माता के दूध पीने का दुःख रहता है, फिर जबानी में स्त्री-वियोग-जनित दुःख होता है और बुढ़ापा में तो कुछ सार ही नहीं है, इसलिए, हे लोगो! बोलो तो सही कि-संसार में जरा सा भी सुख है ? ।। ६१ ॥ अन्यदपिऔर भीनिद्रव्यो धन-चिन्तया धनपतिस्तद्रक्षणे चाकुलो, निःस्त्रीकस्तदुपाय-संगत-मतिः स्त्रीमानपत्येच्छया। प्राप्तस्तान्यखिलान्यपीह सततं रोगैः पराभूयते, जीवः कोऽपि कथंचनाऽपि नियतं प्रायः सदा दुःखितः ॥ १२ ॥ निर्धन धन की चिन्ता से और धनी उसकी रक्षा में व्याकुल रहता है, बिना स्त्री का स्त्री-प्राप्ति के लिए और स्त्रीवाला सन्तान के लिए प्रायः बेचैन रहता है, कदाचित् इन चीजों को मिलने पर भी प्राणी सर्वदा रोगों से पीड़ित रहता है, वास्तव में कोई भी जीव किसी तरह भी निश्चय करके प्रायः सदा दुःखी ही रहता है ।। १२॥ तथा चऔर भीदारिद्रयाकुलचेतसां सुत-सुता-भार्यादि-चिन्ताजुषां, नित्यं दुर्भर-देह-पोषण-कृते सत्रिंदिवं खिद्यताम् । राजाज्ञा-प्रतिपालनोद्यतधियां, विश्राम-मुक्तात्मनां, सर्वोपद्रव-शंकिनामघभृतां धिग्देहिनां जीवनम् ॥ ३॥ गरीबी से व्याकुल-चित्त वाले, लड़का-लड़की-सी आदि की चिन्ताओं से युक्त और प्रति दिन हैरानी से देह को पालन-पोषण के लिए दिन-रात खेद पाने वाले, राजा की आज्ञा को पालन करने में सतर्क रहने वाले, आराम से रहित जीषों के, सभी तरह उपद्रव की शंका करने वाले पापी प्राणियों के जीवन को धिक्कार है ।।६३॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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