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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२ श्री कामघट कथानकम या निर्मायका अप्सरसस्ता सर्वा अपि नाथममिलषन्त्यो विमान आसीनास्तत्र समाजग्मुः, यतो रणे मृतानां स्वर्गोत्पत्तिरित्युक्तत्वात् । रोषाऽतिशयेनैवं युद्धमानास्ते पापबुद्धिसुभटा मतिसागरसुभटैरन्ते त्वरितमेव पराजिताः। ततः पापबुद्धी राजा च तत्सुभटगणमध्य एव बद्धः। अथ मन्त्री राजानं प्रति पृच्छति स्म-किं भवान्मामुपलक्षयति ? तदा राजा कथयति स्म-भास्करमिव तेजस्विनं भवन्तं को न जानाति १, ततः पुनमन्त्री कथयति स्म-एतदहं नो पृच्छामि किन्तु कोऽस्म्यहमिति पृच्छामि, तदा राजा नाहं जानामीति प्रत्युवाच। ततः सचिवेनोक्तम् , श्रयताम्-हे राजन् ! सोऽहं धर्मबुद्धिनामा भवन्मंत्री विदेशात्परावृत्य धर्मफलप्रदर्शनार्थ भवदग्रे समागतोऽस्मि । पुनमन्त्री साञ्जलिरूचे हे राजन् ! कथय धर्मो नितरं सत्फलदायकोऽस्ति नवेति ? दृश्यताम्-धर्मत एव निखिललक्ष्मीलाभः सर्वा आशा च मे परिपूर्णा जाता । एवं द्वितीयवारमपि विदेशे गत्वा धर्मफलं प्रदर्य तेन मंत्रिणा स राजा जैनधर्मे दृढीकृतस्ततस्तेन नृपेणापि दुर्गतिदायकमधर्म पापपाशकमपनीय भवान्धितरणतारणतरिरूपा जिनाज्ञा सहर्षमंगीकृता, तत्क्षण एव मन्त्रिणा बन्धनान्मुक्तो राजा हर्षतौर्यत्रिकं तत्र सम्यगवीवदत् । अहो ! कथंभूतमिदमाश्चर्यजनकं मंत्रिणः सौजन्यम्, यद्राज्ञो धर्मिकरणाय देशान्तरं गतः । नानाविधानि दुःखानि च समवलोकितानि, परमवसाने तु तेन राजानं धर्मिणं विधायैव मुक्तः। एवंभूतस्वभाववन्तः परोपकारिणः सजना अस्मिन् लोके विरला एव भवन्ति । अनन्तर बीच में रण का खंभा गाड़ कर दोनों पक्ष के योधा परस्पर आमने सामने हो गए और युद्ध के बाजे बजवा दिए। उसके बाद वे दोनों सेनाएँ महान बल के घमण्ड से युद्ध शुरु करने लगीजैसे-हाथी हाथियों के साथ, घोड़े घोड़ों के साथ, पैदल पैदलों के साथ, रथसवार रथसवारों के साथ, नाल-गोली वाले नाल-गोली वालों के साथ भिड़ गए। उससे उड़ती हुई धूली की ढेर से सूर्य ढक गया। वहां हाथी वादल की तरह गरजते थे, बिजली गिरने की तरह तलवार की धारें गिरने लगी और वाणों की वर्षा जल धारा की तरह बरसने लगीं। मरना की तरह रक्त का बहाव फैल गया। वहां रण में जो कायर थे, वे सब ऐसे थर्रा ( सहम ) गए जैसे वर्षाकाल में इन्द्र जौ सूख जाते हैं। अधिक खून गिरने से पृथिवी पंकिल (कीचड़ वाली) हो गई। धूलियों के बढ़ाव से आकाश ढक गया, उस समय क्या यह वर्षा काल आगया ? लोग इसतरह शक करने लगे। जो अच्छे लड़वैये थे वे शेर की तरह गर्जना करते थे, उस घोर शब्द से दूसरे का शब्द सुनाई नहीं देता था। बिना पति वाली स्वर्ग की अप्सराएं अपने अपने पति को चाहती हुई विमान पर बैठी हुई वहां आगई, क्योंकि युद्ध में मरने वालों को स्वर में उत्पत्ति होती है, ऐसा शास्त्रों में कहा हुआ है। अत्यन्त क्रोध से युद्ध करते हुए पापबुद्धि के सुभट लोग धर्मबुद्धि For Private And Personal Use Only
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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