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श्री कामघट कथानकम्
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अधिक सीधापन अच्छा नहीं, जाकर वनस्थली को देखो,-वहां सीधे झाड़ काटे जाते हैं और टेढ़े-मेंढ़े नहीं काटे जाते हैं ।। ६७ ।।
तथा च-- और इसीतरह :दाक्षिण्यं वजने दया परजने शाठ्यं सदा दुर्जने, प्रीतिः साधुजने नयो नृपजने विद्वज्जनेष्वार्जवम् । शौर्य शत्रुजने क्षमा गुरुजने नारीजने धूर्तता, ये चैवं पुरुषाः कलासु कुशलास्तेष्वेव लोक-स्थितिः ॥ ६८ ॥
अपने कुटुम्बवर्ग में चतुराई, दूसरे लोगों में दया, दुष्टों के प्रति शठता, सज्जनों में प्रेम, राजाओं में नीति, विद्वान् वर्गों में सरलता, शत्रुओं में वीरता, गुरुजनों में क्षमा और स्त्री वर्गों में चालाकी, ये बातें जिन पुरुषों में पाई जाती हैं वे ही कला-कुशल हैं और उन्हीं में लोगों की स्थिति है ।। ६८ ॥
अथ नानादेशान्तरायातलोकेर्लीलाविलासकलाकुशलः कामिनीनयनानन्ददायकैरभिभृतं मनोज्ञतोरणैः पञ्चशतैर्वातायनैर्युतं धन्याभिः शतपंचभिर्वरकन्याभिः पूरितमेवंविधं महासौधममरागारसन्निभं गीतनृत्यादिध्वनिगुञ्जितं रत्नसुन्दर्येक्षत, तया गणिकया च सा निजावाससप्तमभूमौ स्थापिता । अथ सा वेश्यां प्रति पृच्छति स्म-क्व मे भर्ती ? सा प्राह-~-बहवोऽत्र ते भर्तारः समायास्यन्ति । ये राजानो राजपुत्राः मण्डलाधिपाः सुश्रेष्ठिनः सार्थवाहाश्च ते त्वकिकरा भविष्यन्ति । छत्रचामरवादित्रसुखासनहयगजान् तवाज्ञावशवर्तिनो राजान आनयिष्यन्ति । मनोज्ञतरा नवनवास्तेऽत्र सत्कामभोगा भविष्यन्ति, हे मृगेक्षणे! किंबहुना ? तव पदाम्बुजे नवनवा नराः सदैव पतिष्यन्ति, त्वया नेत्रविभागेन दृष्टाः सुरासुरसेविता मुनयोऽपि वशवर्तिनो भविष्यन्ति । हे सुभगे ! कि बहूक्तेन ? नरत्वेऽपि मनसा चिन्तितं सर्व देववत्ते भविष्यति, इत्याद्युक्त्वा तया सर्वोऽपि स्वकुलाचारः प्रदर्शितः। तदा मन्त्रिपन्या चिन्तितम्-ऊ एतत्तु गणिकालयं, हा ! मयाथास्मिन् वेश्यागृहे पति विना सर्वोत्तमं भूषणरूपं स्वशीलं कथं रक्षणीयम् ? ___इसके बाद अनेक दूसरे देशों से आए हुए, लीला, विलास (नाटक-खेल कौतुक ) कला में कुशल और कामिनियों के नयनों को आनन्द देने वाले लोगों से भरपूर, पांच सौ सुन्दर तोरण और झरोखों से युक्त और अच्छी पांच सौ कन्याओं से पूर्ण, देव-भवन के समान, गान और नाच भादि के शब्दों से
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