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श्री कल्पसूत्र
SO
चौथा
हिन्दी
व्याख्यान
अनुवाद
11461।
ॐऔर सुवर्ण से बुद्धि को प्राप्त होने लगा । हिरण्य-चांदी या बिना घड़ा हुआ सुवर्ण, धन चार प्रकार का होता है, एक ॐ
तो गिना जासके, दूसरा धारण किया जा सके अर्थात् तराजू से तोला जा सके, तीसरा मापा जा सके और चौथा परिच्छेद्य अर्थात् परीक्षा की जासके ऐसा । धान्य चौबीस प्रकार का जानना चाहियें, जिस के नाम निम्न प्रकार हैं-जों, गेहूं, शाली. व्रीही. सट्ठीय, कुद्दव, अणुवा, कंगु, रालय, तिल, मूंग, उड़द, अलसी, हरिमंथ, तिउडा, निफाव, सिलिंद,
रायमासा, उच्छू, मसूर, तुबरी, कलथी, धन्नय और कलाया यह चौबीस प्रकार का धान्य समझना चाहिये । राज्य के पर सात अंग ये हैं-राष्ट्र, दूसरा बल-चतुरंगी सेना, तीसरा वाहन-खच्चर आदि वाहन, चौथा कोश-भंडार, पांचवां
कोष्टागार-धान्य भर रखने के वखार, छट्ठा पुर-नगर और सातवां अन्तपुर-रानियों के रहने का स्थान । तथा * जनपद-देशवासी लोग और यशोवाद-कीर्ति, इन सब वस्तुओं से वह ज्ञातकुल वृद्धि पाता था । विस्तार वाला गोकुल, * सुवर्ण, रत्न, मणि, प्रवाल, मोति, दक्षिणावर्त शंखादि तथा प्रीति सत्कारादि से सिद्धार्थ राजकुल अत्यन्त बढ़ता गया ।
श्रमण भगवन्त महावीर प्रभु के मातापिता के मन में इस प्रकार का अध्यवसाय पैदा हुआ कि जब से हमारा यह पुत्र कुक्षी में गर्भ तया उत्पन्न हुआ है तब से लेकर हम चांदी से, सुवर्ण से और धन धान्य से तथा पूर्वोक्त प्रीति सत्कारादि से अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त होते हैं इसलिए जब हमारे इस बालक का जन्म होगा तब हम भी इस धनादिक की वृद्धि के अनुरूप गुणनिष्पन्न नाम रक्खेंगे । अर्थात् 'वर्धमान' नाम रक्खेंगे ।
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