________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
2054050050
www.kobatirth.org
प्रभु की मातृभक्ति और मोह का नाटक
एक दिन भगवन्त महावीर प्रभु ने गर्भ में यह विचार किया कि मेरे हलनचलन से माताजी को कष्ट न होना चाहिये। "इस तरह माता की अनुकंपा-भक्ति से तथा दूसरे भी इस प्रकार माता की भक्ति करूं इस लिए माता की कुक्षी में स्वयं निश्चल अर्थात अंगोपांग हलन चलन किये बिना निष्कंप हो गये। यहां पर कवि उत्प्रेक्षा करते हैं कि क्या एकान्त में माता के गर्भ में निश्चल रह कर प्रभु मोह सुभट को जीतने का विचार करते हैं ? या परब्रह्म के लिए कोई अगोचर ध्यान करते हैं ? या कल्याण रस स्वर्णसिद्धि की साधना करते हैं ? या कामदेव का नाश करने के लिए अपने रूप को उन्होंने लोप कर लिया है ? ऐसे श्रीवीर प्रभु आप को लक्ष्मी के लिए हों ।
माता की भक्ति से भगवान् के गर्भ में निश्चल रहे बाद त्रिशला क्षत्रियाणी के मन में इस प्रकार का अध्यवसाय पैदा हुआ क्या मेरा वह गर्भ किसी देवाण्दिकने हरण कर लिया या मेरा गर्भ मर गया या च्युन हो गया, गर्भ गल गया ? क्यों कि वह पहले तो हलताचलता था और अब तो बिल्कुल हलता नहीं है।
क्या मेरा
इस तरह के विचारों से कलुषित मनवाली तथा गर्भहरण के संकल्पविकल्पों से उत्पन्न पीड़ा द्वारा शोक समुद्र में डूबी हुई और हथेली पर मुख रख कर आर्त्तध्यान द्वारा भूमि पर दृष्टि लगाये हुए त्रिशला क्षत्रियाणी मन में विचारने लगी । यदि सचमुच ही मेरे गर्भ को नुकशान हुआ हो तो पुण्य रहित जीवों में मैं ही मुख्य हूं । घर वृद्धि नहीं पाता भूमि के भाग्य से मारवाड़ देश में कल्प
अथवा चिन्तामणि रत्न भाग्यहीन मनुष्य के
1
For Private and Personal Use Only
40501054050
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir