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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न) चौथा श्री कल्पसूत्र हिन्दी व्याख्यान 出皇宫% अनुवाद 114511 5वर्ती के गर्भ में आने पर 14 स्वप्न देखकर जागती है और मंडलिक की माता मंडलिक के गर्भ में आने पर 14 स्वप्नों में 4 में से कोई भी एक स्वप्न देखकर जागती है परन्तु हे त्रिशला ! तूने तो चौदह ही महास्वप्न और उदार स्वप्न देखे हैं: इसलिए तीन लोक का नायक और धर्म में श्रेष्ठ ऐसा चार गति विनाशक चक्रवर्ती जिनेश्वर तेरा पत्र होगा । त्रिशला क्षत्रियाणी इस अर्थ को सुन कर धारण करती है और हर्षित होती है । संतुष्ट होकर यावत् हर्ष से पूर्ण हृदयवाली होकर दोनों हाथ जोड़कर अंजलि कर के उन स्वप्नों को मन में धारण कर रखती हैं । अब वह सिद्धार्थ राजा की आज्ञा पाकर 16 अनेक प्रकार के मणि और रत्नों से जड़े हुए उस भद्रासन से उठती है और उठकर शीघता रहित, चपलता रहित यावत्न राजहंसी के समान गति से जहां पर उसका निवास मंदिर है वहां चली जाती है और वहां ही आनन्द से रहती है । प्रभु का अतुल प्रभाव । जिस दिन से श्रमण भगवान् महावीर प्रभु उस राजकुल में आये उस दिन से लेकर धनद की आज्ञा में रहनेवाले तिर्यग् लोक में बसनेवाले तिर्यग्नुंभक देवता वैश्रमण अर्थात् कुबेरद्वारा इंद्र की आज्ञा पाकर जिस का आगे चल कर स्वरूप वर्णन करेंगे उस प्रकार का निधानरूप से दबाया हुआ अतुल द्रव्य लाकर राजकुल - मे भरने लगे । वे कैसे निधान थे सो नीचे बतलाते हैं । जिस के स्वामी नष्ट हो गये हैं, जिस धन को इकट्टा - * करने वाले मर चुके हैं, जिन निधानों के मालिक मर जाने पर उनके गोत्रिय तक भी मर चुके हैं, जिन की ane ) For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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