SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उयायी बने, क्यों कि कहा भी है सर्वेपि यत्र नेतारः, सर्वे पंडितमानिनः । सर्वे महत्वमिच्छन्ति तद्वंदमवसीदति ।।1।। अर्थात्- जहां पर सब ही अग्रेसर हों, सब ही अपने आपको पंडित मानते हों, सब ही महत्व चाहते हों तो वह समुदाय नष्ट हो जाता है । इस बात पर यहां एक दृष्टान्त देते हैं- एक समय परदेश से एक पांच सौ सुभटों का समुदाय नौकरी करने के लिये एक राजसभा में आया । वे पांच सौ ही अभिमानी थे. बड़े छोटे का व्ययहार तक भी आपस में पहन करते थे। मंत्री की सलाह से उनकी परीक्षा करने के लिए राजा ने रात्रि के समय उनके पास एक शय्या भेजी. परन्तु वे तो सभी अपने आपको बड़ा समझते थे इसलिए आपस में कलेश करने लगे, अन्त में फैसला हुआ कि उस शय्या - पर कोई भी न सोवे, अतः उसे बीच में रख कर वे चारों ओर उसकी तरफ पैर कर के सो गये । प्रातःकाल राजा ने * उनकी चेष्टायें जानने के लिए छोड़े हुए गुप्त पुरुष के द्वारा समाचार सुन कर उन्हें यह समझ कर कि ये युद्धादि में किसी के आज्ञाकारी नहीं रह सकते अपमानित कर वहां से निकाल दिया । इसलिए स्वप्नपाठक राजद्वार पर एकमत होकर सभामंडप में सिद्धार्थ राजा के पास के पास आये । वहां आकर हाथ जोड़ कर-हे राजन् ! आपकी देश भर में जय हो, MK विदेश में विजय हो इस प्रकार जय और विजय से राजा को बधाया और आशीर्वाद दिया - दीर्घायुभव, वृत्तवान् भव, भव श्रीमान्, यशस्वी भव, प्रज्ञावान् भव, भूरिसत्वकरूणादानैकशौण्डो भव, 峻岭您收 . For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy