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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassarsur Gyanmandir www.kabatirth.org आरक्षक और संधिपालक इत्यादि के साथ मन्जन घर से निकलता हुआ धवल महामेघ से निकलते हुए नक्षत्र तारागणों का में चंद्र के समान लोकप्रिय, नरवृषभ, नरों में सिंह सदृश वह सिद्धार्थ राजा राज्यलक्ष्मी से सुशोभित होकर सभामंडप में 5 • आकर पूर्वदिशा के सन्मुख सिंहासन पर बैठता है । वहीं पर ईशान कौन में वस्त्र से ढके हुए सरसों के उपचार से. मंगलिक किये हुए आठ भद्रासन रखवाये और रत्नजड़ित, बहुमूल्यवान्, दर्शनीय, प्रधान पत्तन में बना हुआ, अन्यन्त है सिगन्ध, कोमल उत्तम वस्त्र का एक पर्दा ऐसे स्थान पर बंधवाया जो राजा के सिंहासन से अति दूर भी न था और न ही अति नजदीक था । वह पर्दा-जिसे पवनिका या कनात भी कहते हैं मृग, वृक, रोझ, वृषभ, मनुष्य, मगरमच्छ, पक्षी, सर्प, किन्नर, कस्तूरिया मृग, अष्टापद, सिंह, चमरी गाय, हाथी, वनलता, पद्मलता इत्यादि के चित्रों से सुशोभित * था । उस पर्दे के अन्दर त्रिशला रानी के बैठने के लिए मणि रत्नजड़ित, कोमल, अंग को सुखकारी स्पर्शवाले मखमल * के बने हुए और उपर के श्वेत वस्त्र से आच्छादित एक भद्रासन को रखवाया । स्वप्न पाठकों का राजसभा में आगमन अब सिद्धार्थ राजाने कौटुंबिक अर्थात् अपने आज्ञाकारी राजपुरुषों को बुलवाया और उनसे कहा-हे देवानुप्रियों ! तुम शीघ जाकर अष्टांग निमित्तशास्त्र के सूत्रार्थ को जाननेवाले स्वप्नपाठकों को बुला कर लाओ । ज्योतिषशास्त्र के आठ अंग निम्न प्रकार हैं - सी0सी0 For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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