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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद 113911 400 500 40 www.kobatirth.org वस्त्र धारण किये, गोशीर्षचंदन का विलेपन किया, पवित्र पुष्पमालायें पहनी, केशर आदि का तिलक लगाया। मणि, ( रत्न और सुवर्ण के बने हुए आभूषण पहने, अठारह, नव, तीन और एक लड़ी के हार गले में धारण किये । कीमती हीरों और मणियों से जड़े हुए मोतियों के लम्बे-लम्बे फुंदों सहित कमर में कटिभूषण पहना । हीरे माणिक्यादि के कंठे पहने, अंगुलियों में अंगूठी आदि पहनी और अनेक प्रकार की मणियों से बने हुए बहुमूल्यवान जड़ाउ कड़े हाथों में तथा भुजाओं के आभूषण भुजाओं में पहने । इसी प्रकार कीमती कुंडलों से राजा का मुखमंडल शोभता है, मुकुट से मस्तक दीपता है, अंगूठियों से अंगुलियां पीली हो गई हैं, बहुमूल्य अत्यन्त उत्तम वस्त्र का उत्तरासन किया है, नाना प्रकार के रत्न और मणियों से जड़ा हुआ सुवर्ण का चतुर कारीगर द्वारा बना हुआ वीरतासूचक वीरवलय भुजा में धारण किया है जिस के धारण करने से वह वीर पुरूष सिद्धार्थ अन्य किसी से जीता न जा सकता था। अधिक क्या वर्णन किया जाय ? जिस प्रकार कल्पवृक्ष पुष्पपत्तों से अलंकृत और विभूषित होता है वैसे ही सिद्धार्थ राजा भी आभूषणों से अलंकृत और वस्त्रों से विभूषित था, कोरंट वृक्ष के श्वेत पुष्पों की माला से सुशोभित छत्र मस्तक पर धारण किये हुए था, अति उज्वल चमर ठुल रहे थे, चारों तरफ लोग राजा की जय जयकार कर रहे थे। इस प्रकार सब तरह से अलंकृत हो कर अनेक दंडनायक, गणनायक, राजेश्वर, सामन्त, महासामन्त, मंडलिक, मंत्री, महामंत्री, सेठ, सार्थवाह, अंगरक्षक, पुरोहित, दंड र धनुषधर खड्गधर, छत्रधारी, चंवरधारी, ताम्बूलधारी, शय्यापालक, गजपालक, अश्वपालक, अंगमर्दक, For Private and Personal Use Only 0000000550 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तीसरा व्याख्यान
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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