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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्री कल्पसूत्र तीसरा हिन्दी व्याख्यान अनुवाद 1135।। उसमें लाल, पीले, नीले, श्याम और श्वेत रंगवाले वस्त्रों की पताकायें लगी हुई हैं । उसके सिर पर अत्यन्त सुन्दर एवं विचित्र रंगोंवाले मयूर पिच्छे लगे हुए हैं इस से वह ध्वज अत्याधिक शोभायमान है । उस ध्वजा में स्फटिक रत्न, शंख, कुन्द के पुष्प, जलबिन्दु और चांदी के कलश समान श्वेत सिंह का रूप चित्रा हुआ है, जो सिंह पवन से ध्वजा के हिलने - पर मानो आकाश को भेदन करता हो ऐसा मालूम होता है, अतः मंद 2 सुहावने वायु से कंपायमान वह ध्वज अतीव शोभनीक दिखता है ।। नौ में स्वप्न में त्रिशला देवी ने उत्तम सुवर्ण का अत्यन्त सूर्यमंडल के समान प्रकाशवान तथा सुगन्धी जल से भरा हुआ एक पूर्ण कलश देखा । वह कलश कमलों से घिरा हुआ, सर्व मंगलकारी रत्नों के कमल पर रक्खा हुआ, नेत्रों को आनन्ददायक, प्रभायुक्त, सर्व दिशाओं को प्रकाशित करता हुआ साक्षात् लक्ष्मी के घर समान, पाप रहित, शुभ तथा * भास्वर है और कंठ में सर्व ऋतुओं सम्बन्धी सरस सुगंधित पुष्पों की मालायें पहने हुए है 191 दशवें स्वप्न में पद्मसरोवर देखती है-जिसमें सूर्योदय से सहस्त्रदल कमल खिल रहे हैं, जिसका निर्मल जल विकसित कमलों के मकरंद से सुगन्धमय है तथा कमलों के पुष्प, पत्तों से पीले वर्ण का मालूम हो रहा है और जिसमें अनेक जलचर प्राणी सुखपूर्वक रहते हैं । कमलनी के पत्रों पर पड़े हुए जलबिन्दु ऐसे मालूम होते हैं मानो निलमणि-जड़ित आंगन में मोती जड़े हैं । उस विशाल पद्मसरोवर में पैदा हुए सूर्य विकाशी कमल, चंद्र 895400000 00000 35 For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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