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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 40 500 40 5000 40 सातवें स्वप्न में त्रिशलादेवी सूर्यमंडल को देखती है वह सूर्य अंधकार समूह का विनाशक, जाज्वल्यमान तेजवान् लाल अशोक, प्रफुल्लित केसूपुष्प, तोते के चोंच, तथा चणोठी के अर्थ भाग सदृश रक्त वर्णमाला और कमलों को विकसित कर-कमल वनों की शोभा बढानेवाला है । ज्योतिष-शास्त्र संबन्धी लक्षणों को बतलाने वाला, ज्योतिष चक्रग्रहों का राजा एवं आकाश में साक्षात दीपक के समान है। वह हिमपटल को गलानेवाला, रात्रिविनाशक, उदय और अस्त समय में ही दो दो घड़ी सुखपूर्वक और शेष समय दुःख से देखने योग्य है, उदय एवं अस्त समय ही जो एकसा लाल तथा संसार का नेत्ररूप है । तथा वह अंधकार में स्वेच्छा पूर्वक विचरने वाले अन्यायकारी मनुष्यों को रोकनेवाला, शीतवेग का विनाशक, मेरूपर्वत की प्रदक्षिणा करने वाला विशाल मंडल युक्त और अपनी हजारों किरणों द्वारा चंद्रादि समस्त ग्रहों के तेज को निस्तेज करने वाला है। सूर्य किरणें ऋतुभेद के कारण सदैव एक समान नहीं रहतीं । निम्न प्रकार होती हैं । सूर्य किरण यंत्रकम् 1200 चैत्र वैशाक 1300 www.kobatirth.org ज्येष्ठ आषाढ़ श्रावण भाद्रपद 1400 1500 1400 1400 पोष आश्विन कार्तिक मार्गशीर्ष 1600 1100 For Private and Personal Use Only 1050 1000 माघ फाल्गुन 1100 1050 अब आठमें स्वप्न में त्रिशला क्षत्रियाणी उत्तम सुवर्ण के दंडवाला और हजार योजन ऊंचा ध्वज देखती है 400 500 40 20 9500 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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