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श्री कल्पसूत्र
हिन्दी
अनुवाद
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भरतक्षेत्र में अपरकंका नामक राजधानी के स्वामी राजा पद्मोत्तर के सामने जा कर जो स्त्री लंपट था, द्रोपदी के रूप की प्रशंसा की । उसने अपने किसी मित्र देव के द्वारा द्रोपदी को अपने अन्तःपुर में मंगवा लिया । द्रोपदी के गुम होने पर पांडव माता कुन्ती ने कृष्ण को यह समाचार कहा। कृष्ण द्रोपदी की खोज में व्यय थे। उस समय वहां पर आये हुए उसी नारद से द्रोपदी का समाचार सुन कृष्ण ने सुस्थित देव की आराधना की । उस देव की सहाय से दो लाख योजन प्रमाणवाले लवणसमुद्र को उल्लंघन कर कृष्ण पाण्डवों सहित धात की खण्ड की अपरकंका नगरी में पहुंचा। वहां पर पाण्डवों का तिरस्कार करनेवाले पद्मोत्तर राजा को नरसिंहरूप से जीतकर और द्रोपदी के वचन से उसे जिन्दा छोड़कर द्रोपदी को साथ ले कृष्ण वापिस लौटे। लौटते समय कृष्ण ने अपने पांचजन्य शंख को बजाया । शंख
शब्द
सुन कर वहां विचरते हुए मुनिसुव्रतस्वामी तीर्थपति के वचन से कृष्ण का वहां आगमन जान कर मिलने की उत्सुकता से वहां के कपिल नामक वासुदेव ने समुद्र तट पर शंखनाद किया परस्पर दोनों के शंखनाद मिल गये । इस प्रकार कृष्ण का अपरकका नगरी में जाना इस अवसरर्पिणी में पांचवां आश्चर्य हुआ
(6) मूल विमान से सूर्य चंद्र का अवतरण कोशांबी नगरी में भगवान श्री वीरप्रभु को वन्दनार्थ सूर्य और चंद्रमा अपने मूल विमान से आये थे, यह छट्टा आश्चर्य हुआ ।
(7) हरिवंश कुल की उत्पत्ति
कौशांबी नगरी में सुमुख नामक राजा राज्य करता था। उसने शाला
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दूसरा
व्याख्यान