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पति वीरक की वनमाला नाम की स्त्री को विशेष रूपवती होने से अपने अन्तःपुर में रखली । वह शाला पति उसके वियोग से पागल हो गया । जिसको देखता है उसे ही वनमाला वनमाला कह कर पुकारता है । इस दशा में अनेक तमाशवीनों सहित वह नगर में भटकता फिर रहा था । उस समय राजा और वनमाला राजमहल में एक बारी में बैठे हुए क्रीडा कर रहे
थे । अचानक ही उन दोनों की नजर उस वीरक शालापति पर पड़ी । उसकी दशा देख दोनों के मनमें अपने अनुचित कर्म ॐ को लिए पश्चाताप पैदा हुआ । उस वक्त आकाश में बादलों का जोर था, अकस्मात् उपर से बिजली पड़ी और उस से:
उन दोनों की मृत्यु हो गई । शुभ परिणाम से मर कर दोनों ही हरिवर्ष क्षेत्र में युगलिकतया पैदा हुए । शालापति को उनकी मृत्यु का समाचार मालूम होने पर होश आ गया । उन पापियों को उनके पाप का दण्ड मिल गया, इस भावना से उसकी विकल्पता दूर हो गई । वह फिर वैराग्य प्राप्त कर तपस्या करने लगा । उस तप के प्रभाव से मर कर सौधर्म कल्प में किल्विवपिक देव हुआ । विभंग ज्ञान से उन दोनों के देख कर विचारने लगा कि -अहो । ये मेरे शत्रु युगलिक सुख भोग कर देव बनेंगे: इन्हें तो दुर्गति में धकेलना चाहिये । ऐसे विचार से अपनी शक्ति से उनके शरीर संक्षिप्त कर के वह देव उन्हें यहां भरत क्षेत्र में ले आया । यहां पर राज्य देकर उन्हें सातों व्यसन सिखलाये । वे व्यसनों में आसक्त हो मर कर नरक में गये । उनका जो वंश चला वह हरिवंश कहलाता है । यहां पर युगलिकों को शरीर और आयु संक्षिप्त कर भरतक्षेत्र में लाना और उनका मर कर नरक में जाना यह सब कुछ आश्चर्य में समझना चाहिये । यह सातवा
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