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श्री कल्पसूत्र
हिन्दी
अनुवाद
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वह न्यायवान होने से किसी समीपवर्ति देवताने उसे ले जाकर उसके स्थान पर रख दिया। अतः हे आनन्द । तेरा धर्माचार्य ऋद्धि प्राप्त होने पर भी संतोष न पाकर ज्यों त्यों बोल कर मुझे कुपित करता है, में अपने तप तेज से उसे भस्म कर डालूंगा, इसलिए तूं शीघ्र ही जाकर उसे यह बात कह दे । उस वृद्ध वणिक के समान हितोपदेशक समझ कर मैं तेरी रक्षा करूंगा । यह बात सुन कर आनन्द ने सर्व वृत्तान्त प्रभु से आ कहा । भगवान बोले-हे आनन्द ! तूं शीघ्र ही गौतमादि मुनियों से जाकर कहा कि यह गोशाला यहां रहा है अतः उसके साथ किसी को भी संभाषण न करना चाहिये और तुम सब यहां से इधर-उधर चले जाओ । उन सभी ने वैसा ही किया । इतने में गोशाला वहां पर पहुंचा । और भगवान से बोला कि हे काश्यप ! तूं ऐसा क्यों बोलता है ? कि यह मंखली का पुत्र गोशाला है । वह तेरा शिष्य मंखलीपुत्र तो मर गया, मैं तो और ही हूं। उसका शरीर परीषहों को सहन करने में समर्थ समझ कर मैंने उसमें प्रवेश किया हुआ है । इस प्रकार गोशाला द्वारा प्रभु का तिरस्कार न सहते हुए वहां पर रहे हुए सुनक्षत्र और सर्वानुभूति नामक दो मुनियों को बीच में उत्तर देते हुए गोशाला ने तेजोलेश्या से भस्म कर दिया। वे मर कर स्वर्ग को प्राप्त हो गये । भगवान बोले- हे गोशालक ! तूं वही गोशाला है, अन्य नहीं किस लिए वृथा ही अपने आपको छिपाता है ? इस प्रकार तूं अपने आपको छिपा नहीं सकता । जिस प्रकार कोई चोर कोतवाल की नजर में आजाने पर भी अपने आपको प्रयत्न करे तो क्या वह छिप नहीं सकता । भगवान के सत्य वचन
एक तिनके या अंगुली के पीछे छिपाने का
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दूसरा व्याख्यान
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