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Acharya Shri Kalassagarsur Gyarmandie
हैं ? भगवान ने कहा-यह जिन नहीं है, परन्तु शाखण ग्रामनिवासी मखली और सुभद्रा से अधिक गायोंवाली एक ब्राह्मणी की गोशाल में पैदा होने के कारण गोशाल' नामधारी एक हमारा ही शिष्य है । वह हमारे ही पास कुछ ज्ञान प्राप्त कर के मिथ्या मान बडाई के लिए व्यर्थ ही अपने आप को जिनेश्वर प्रसिद्ध करता है । सर्वज्ञ देव का यह वचन सर्वत्र फैल गया। गोशाला इस बात को सुन कर बड़ा कुपित हुआ । उस समय गोचरी के लिये शहर में गये हुए आनन्द नामक भगवान के शिष्य को देख कर गोशाला बोला कि हे-आनन्द ! एक दृष्टान्त सुनता जा । कितने एक व्यापारी अनेक प्रकार के करियाण गाड़ियों में भरकर धन कमाने के लिए परदेश जाने को घर से निकले । मार्ग में उन्होंने एक अटवी में प्रवेश किया । वहां 40 उन्हें प्यास लगी, परन्तु खोज करने पर भी उन्हें वहां पर कहीं जलाशय न मिला । पानी की खोज करते हुए उन्होंने चार बांधी शिखर देखीं । एक बांधी को फोडने पर उसमें से खूब पानी निकला । उन सबने अपनी प्यास बुझाई और मार्ग के लिए जलपात्र भर लिए । उनमें से एक वृद्ध वणिक बोला कि-भाईयों ! अपना काम हो गया चलो, अब दूसरी बांबी (शिखर) फोडने की आवश्यकता नहीं हैं । निषेध करने पर भी उन्होंने दूसरी बांबी (शिखर) फोड़ डाली । उसमें से उन्हें बहुत सा सुवर्ण 'प्राप्त हुआ । वृद्ध के मना करने पर फिर उन्होंने तीसरा शिखर फोड़ा, उसमें से बहुत सारे रत्न निकले । उस वृद्ध वणिक * के रोकने पर ध्यान न देकर उन्होंने चौथे शिखर को भी फोड़ डाला । उसमें से एक दृष्टिविष सर्प निकला । उसने अपनी * कर दृष्टिद्वारा सब को मौत के घाट उतार दिया । जो उनमें हितोपदेशक वृद्ध था ।
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