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श्री कल्पसूत्र
दूसरा
हिन्दी
व्याख्यान
अनुवाद
1122।।
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इसके अतिरिक्त अन्य विशुद्ध जाति कुल में आये है, आते हैं और आयेंगे । परन्तु वे पहले किये नीचादि कुल में अवतार नहीं लेते । फिर यह बनाव क्यों बना सो बतलाते हैं-संसार में एक भवितव्यता नामक आश्चर्यकारी भाव-बनाव है जो अनन्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के व्यतीत होने पर बनता है । जिसमें इस वर्तमान अवसर्पिणी काल में ऐसे दश बनाव-आश्चर्य उत्पन्न हुए हैं । वे दश इस प्रकार हैं
दस आश्चर्य उपसर्ग 1, गर्भहरण 2, स्त्री तीर्थकर 3, अभावित पर्षदा 4. कृष्ण का अपरकंका गमन 5, मूल विमान से सूर्य चंद्र का . अवतरण 6, हरिवंश कुल की उत्पत्ति 7, चमरेंद्र का ऊर्ध्वगमन 8, एक समय में एक सौ आठ का सिद्धिगमन 9. तथा असंयतिपूजा 10 इन दश आश्चर्यों की व्याख्या क्रम से निम्न प्रकार है
(1) उपसर्ग- उपद्रव, वे श्री वीरप्रभु का छप्रस्थ अवस्था में बहुत हैं, जिन का आगे चल कर वर्णन करेंगे परन्तु जिस अवस्था में LE के प्रभाव से समस्त उपद्रव शान्त हो जाते हैं. उस केवल ज्ञानावस्था मे भी जो इन्ही प्रभु को अपने ही शिष्य गोशालक से उपद्रव हुआ..
वह आश्चर्य इस प्रकार है- एक समय श्री वीरप्रभु चिवरते हुए श्रावस्ती नगरी में समवसरे । तब गोशालक भी उस नगरी में आ निकला और अपने आप को जिनेश्वर प्रकट करने लगा । आज श्रावस्ती नगरी में दो जिनेश्वर पधारे हैं. यह बात जनता में फैल गई । यह सुनकर गौतमस्वामी ने प्रभु महावीर से पूछा कि भगवन् ! अपने आपको जिनेश्वर प्रसिद्ध करने वाला यह दूसरा कौन मानव (मनुष्य)
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