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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie सी00000 को प्राप्त करने की इच्छावाले हैं उन्हें नमस्कार हो ! इंद्र कहता है कि उस देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षी में रहे हुए उन वीर प्रभु को मैं वन्दन करता हु । मैं यहां हूं और प्रभु वहां हैं । वे मुझे यहां पर ही देखें यह समझ इंद्र प्रभु को वन्दन नमस्कार करता है। इंद्र के मन मे संकल्प प्रभु को नमस्कार कर इंद्र अपने सिंहासन पर पूर्व दिशा की ओर मुख कर के बैठ जाता है । उस वक्त देवराज इंद्र को इस प्रकार का संकल्प उत्पन्न हुआ । अर्थात् इंद्र को अभिलाषरूप मनोगत विचार पैदा हुआ। वह क्या संकल्प था सो नीचे बतलाते हैं आज तक कभी भूतकाल में ऐसा बनाव नहीं बना, वर्तमानकाल में ऐसा नहीं बनता और भविष्यकाल में ऐसा न बनेगा कि जो अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव या वासुदेव शूद्र, अधर्म, तुच्छ, अल्प, निर्धन, कृपण, भिक्षुक या ब्राह्मणकुल में आये हों या आते हों अथवा भविष्य में आवें । वे निश्चय से उपकुल-श्री ऋषभदेव प्रभद्वारा स्थापित रक्षक पुरूषों के कुल में, भोगकुल-गुरूतया स्थापित किये पुरुषों के कुल में, राजन्यकुल-आदिनाथ प्रभुद्वारा स्थापित मित्र स्थानीय पुरूषों के कुल में, इक्ष्वाकु कुल-श्री ऋषभदेव प्रभु के वंश में पैदा हुए मनुष्यों के कुल में, क्षत्रियकुल - श्री आदिनाथ प्रभुद्वारा स्थापित प्रधान प्रकृतिवाले मनुष्यों के कुल मे हरिवंशकुल - पूर्वभव वैर के कारण हरिवर्ष क्षेत्र से देवता द्वारा भरत में लाये हुए युगलिक के वंशजों के कुल में , 换% 獲獎的使 For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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