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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 05405004050410 www.kobatirth.org रेती में दबा हुआ है और सिर्फ डेढ़ हाथ बाहर दीखता है। विचार कर कहो कि उस स्तंभ की कितनी लंबाई होनी पन चाहिये ? वह गणित के हिसाब से 6 हाथ लंबा स्तंभ था । गणित के ऐसे हिसाबों को शीघ्र बतानेवाला होगा । शिक्षा कल्प याने आचार विधान के ग्रंथ, व्याकरण अर्थात् शब्दसिद्धि शास्त्र के वीस व्याकरण इस प्रकार हैंऐन्द्रेव्याकरण, जैनेंद्रव्याकरण, सिद्धहेमचंद्र व्याकरण, चांद्र व्याकरण, पाणिनीय व्याकरण, सारस्वत, शाकटयन, वामन, विश्रान्त, बुद्धिसागर, सरस्वतीकंठाभरण, विद्याधर, कलापक, भीमसेन, शैव, गौड, नन्दी, ज्योत्पल, और जयदेव व्याकरण । इन बीस व्याकरणों में, छंदशास्त्र में, निरूक्त में, ज्योतिषशास्त्र में तथा अन्य भी ब्राह्मण को हितकारी एवं परिव्राजक माने संन्यास संबन्धी आचार शास्त्रों में वह बहुत ही निपुण होगा इसलिए हे देवानुप्रिये ! तुमने श्रेष्ठ स्वप्न देखे हैं । मुष्टि पूर्वोक्त कह कर ऋषभदत्त ब्राह्मण उन स्वप्नों की बारंबार अनुमोदना करता है। फिर देवानन्दा ब्राह्मणी मस्तक पर अंजलि कर के कहती है कि हे देवानुप्रिय ! जैसा आप कहते हैं वैसा ही है । यह बिलकुल यथार्थ और निःसंदेह है जो अर्थ आपने कहा है । मैं भी इसी अर्थ को चाहती हूं, बारम्बार चाहती हूं। यों कह कर देवानन्दा उन स्वप्नों को अच्छी तरह स्मरण करती है। फिर ऋषभदत्त ब्राह्मण के साथ मानवीय सुख भोगती हुई अपना सानन्द समय बिताती है । कार्तिक सेठ की कथा । For Private and Personal Use Only 4000 40 500 40 500 10 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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