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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
प्रथम
व्याख्यान
अनुवाद
111611
ॐ है और दश मण की एक घटिका होती है ऐसा विद्वानों का मत है । अपने अंगुल से एक सौ आठ अंगुल की है 46 ऊँचाईवाला उत्तम पुरुष होता है । मध्यम और जघन्य पुरुष छाणवें तथा चौरासी अंगुल ऊँचा होता है । यहांत
उत्तम पुरुष भी अन्य ही समझना क्यों कि तीर्थकर भगवंत तो बारह अंगुल की शिखा की ऊँचाई होने से एक
सौ बीस अंगल ऊँचे होते हैं । पूर्वोक्त प्रकार से मान, उन्मान प्रमाण से परिपूर्ण मस्तकादि सर्वांग सन्दर र * शरीरवाले और चन्द्रमा के समान रमणीय, मनोहर, प्रियदर्शन एवं मनोज्ञ रूपवान् बालक को हे देवानु प्रिये ! तुम
जन्म दोगी। मन जब वह बालक बाल्यवस्था को त्याग कर आठ वर्ष का होगा तब उसमें सर्व प्रकार का विज्ञान परिणत मग
होगा । क्रम से जब वह युवावस्था को प्राप्त होगा तब वह ऋग्वेदादि का परिज्ञाता होगा । अर्थात् ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अर्थवेद, पुराण, निघंटु तथा वेदों के अंग उपांग सहित उन्हें जाननेवाला होगा । उसमें शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छंद, ज्योतिष और निरूक्त ये 6 अंग कहलाते हैं तथा अंगों के अर्थ को विस्तार से कथन करने वाले ग्रंथ उपांग कहलाते हैं । इन अंग उपांग सहित वेदों को विस्मरण करने वालों को स्मरण करानेवाला, अशुद्ध पढ़ने वालों को रोकनेवाला, स्वयं वेदों को धारण करने वाला वह बालक होगा । हे देवानुप्रिये ! वह बालक छ:
ही अंगो का विस्तार करनेवाला, कपिल प्रणीत शास्त्र में एवं गणितशास्त्र में निपुण होगा । गणित विद्या में वह * ऐसा निपुण होगा जैसे कि "एक स्तंभ है जो आधा पानी में है, उसका बारहवां भाग कीचड में है, छठवां भाग
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