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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कल्पसूत्र हिन्दी प्रथम व्याख्यान अनुवाद 111611 ॐ है और दश मण की एक घटिका होती है ऐसा विद्वानों का मत है । अपने अंगुल से एक सौ आठ अंगुल की है 46 ऊँचाईवाला उत्तम पुरुष होता है । मध्यम और जघन्य पुरुष छाणवें तथा चौरासी अंगुल ऊँचा होता है । यहांत उत्तम पुरुष भी अन्य ही समझना क्यों कि तीर्थकर भगवंत तो बारह अंगुल की शिखा की ऊँचाई होने से एक सौ बीस अंगल ऊँचे होते हैं । पूर्वोक्त प्रकार से मान, उन्मान प्रमाण से परिपूर्ण मस्तकादि सर्वांग सन्दर र * शरीरवाले और चन्द्रमा के समान रमणीय, मनोहर, प्रियदर्शन एवं मनोज्ञ रूपवान् बालक को हे देवानु प्रिये ! तुम जन्म दोगी। मन जब वह बालक बाल्यवस्था को त्याग कर आठ वर्ष का होगा तब उसमें सर्व प्रकार का विज्ञान परिणत मग होगा । क्रम से जब वह युवावस्था को प्राप्त होगा तब वह ऋग्वेदादि का परिज्ञाता होगा । अर्थात् ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अर्थवेद, पुराण, निघंटु तथा वेदों के अंग उपांग सहित उन्हें जाननेवाला होगा । उसमें शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छंद, ज्योतिष और निरूक्त ये 6 अंग कहलाते हैं तथा अंगों के अर्थ को विस्तार से कथन करने वाले ग्रंथ उपांग कहलाते हैं । इन अंग उपांग सहित वेदों को विस्मरण करने वालों को स्मरण करानेवाला, अशुद्ध पढ़ने वालों को रोकनेवाला, स्वयं वेदों को धारण करने वाला वह बालक होगा । हे देवानुप्रिये ! वह बालक छ: ही अंगो का विस्तार करनेवाला, कपिल प्रणीत शास्त्र में एवं गणितशास्त्र में निपुण होगा । गणित विद्या में वह * ऐसा निपुण होगा जैसे कि "एक स्तंभ है जो आधा पानी में है, उसका बारहवां भाग कीचड में है, छठवां भाग For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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