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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandir A चार पुत्रों सहित दीक्षा ग्रहण कर ली । उन चार शिष्यों के नामसे चार शाखायें निकलीं । गौतम गोत्रीय स्थविर आर्यसमित से ब्रह्मदीपिका नामा शाखा निकली है जिसका सम्बन्ध इस प्रकार है-आभीर देश में अचल पुल के नजदीक और कन्ना तथा बेन्ना नामक दो नदियों के बीच ब्रह्मद्वीप में (टापु में) पांच सौ तापस रहते थे । उनमें से एक पैरों में लेप कर के स्थल के समान जल पर चल कर जल से पैर भीजे बिना ही बेन्ना नदी में उतर कर पारणा के लिए जाया करता था । यह देख 'अहो ! इसके तप की शक्ति कैसी प्रबल है ! जैनियों में ऐसा कोई भी प्रभावशाली नहीं है' ऐसी बातें सुन कर श्रावकों ने श्री वजस्वामी के मामा आर्य समितसूरि को बुलवाया । उन्होंने फरमाया कि-यह तापस के तप की शक्ति नहीं, किन्तु पादलेप की शक्ति हैं । एक दिन तापस को श्रावकोंने भोजन के लिए निमंत्रित किया और आने पर उसके पैर पादुकायें खूब मसल कर धो डाली। भोजन किये बाद नदी तक श्रावक साथ गये । धृष्टता का अवलंबन ले उसने नदी में प्रवेश किया परन्तु तुरन्त ही वह डूबने लगा, इससे तापसों की बड़ी अपभ्राजना हुई । उसी समय आर्य समितसूरिने पर आकर लोगों को प्रतिबोध करने के लिए नदी में योगचूर्ण डालकर कहा-हे बेन्ना ! मुझे उस पार जाना है । इतना कहते ही दोनों किनारे अलग अलग हो गये यानि रास्ता दे दिया यह देख लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ । फिर सूरिजी ने उन तापसों के आश्रम में जाकर उन्हें उपदेश देकर दीक्षित किया। उनसे ब्रह्मद्वीपिका शाखा निकली है । आर्य महागिरि, आर्यसुहस्ती, श्रीगुणसुन्दरसूरि, श्यामाचार्य, स्कंदिलाचार्य, रेवतीमित्र सूरीश्वर, श्रीधर्म, For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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