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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyarmandir श्री कल्पसूत्र हिन्दी आठवां व्याख्यान अनुवाद 您修 ||138।। -माहेश्वरीपुरी में अपने पिता के मित्र एक माली को पुष्प एकत्रित करने को कह कर स्वयं हिमवत् पर्वत पर , लक्ष्मीदेवी द्वारा मिला हुआ महापद्म ले तथा हुताशन वन में से बीस लाख पुष्पों सहित जंभक देवों ने बनाये हुए विमान में बैठ कर महोत्सवपूर्वक वहां आकर जिनशासन की प्रभावना की और बौद्ध राजा को भी जैन बनाया । एक दिन श्रीवजस्वामी ने कफ के उपशमन के लिए भोजन के बाद खाने के उद्देश से कान पर रक्खी हुई सूंठ की 5 गांठ प्रतिक्रमण के समय जमीन पर गिरने से स्मरण हुआ । इस प्रमाद के कारण अपनी मृत्यु नजदीक जान कर 5 श्रीवजस्वामीने अपने शिष्य से कहा कि “अब बारह वर्ष का दुष्काल पड़ेगा और जिस दिन मूल्यवाले भोजन में LE से तुझे भिक्षा मिले उससे अगले दिन सुबह ही सुभिक्ष हो जायगा, यह निश्चय समझना चाहिये ।' यों कहकर उन्हें अन्यत्र विहार करा दिया और स्वयं अपने साथ रहे मुनियों सहित रथावर्त पर्वत पर जाकर # अनशन ग्रहण कर के देवलोक गये । उस वक्त संघयणचतुष्क और दशवां पूर्व विच्छेद हो गया । फिर बारह वर्षी दुष्काल पड़ा । उसके अन्त में सोपारक नगर में जिनदत्त श्रावक के घर लक्ष मूल्यवाला अन्न पका, उसकी ईश्वरी नामा स्त्री इस हेतु से कि सारा कुटुंब साथ मर जाय उसमें विष डालने की तैयारी कर रही थी । मालूम होने से उसे गुरू का वचन सुनाकर श्रीवजसेन ने रोका दिया । दूसरे दिन सुबह ही किसी जहाज द्वारा धान्य * आजाने से सुकाल हो गया । उस वक्त जिनदत्त ने अपनी स्त्री तथा नागेंद्र, चंद्र, निवृति और विद्याधर नामक For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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