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र
श्री कल्पसूत्र हिन्दी
आठवां
व्याख्यान
अनुवाद
1113611
श्रावस्तिक 1, राज्यपालिका 2, अन्तरिज्जिया 3 और क्षेमलिज्यिा 4, ये चार शाखायें और गणिक 1, मेधिक 42. कामर्द्धिक 3 और इंद्रपूरक 4 , ये चार कुल हैं । वासिष्ट गोत्रीय स्थविर ऋषिगुप्त कार्कदिक से माणव नामक
गण निकला और उसकी चार शाखायें एवं तीन कुल इस प्रकार कहे जाते है:- काश्यपिका 1, गौतमिका 2, - वाशिष्टिका 3, और सौराष्ट्रिका 4, ये चार शाखायें और ऋर्षिगुप्तक 1, ऋर्षिदत्तिक 2 और अभिजयन्त 3, ये * तीन कुल हैं । व्याघ्रापत्य गोत्रीय तथा कौटिक काकदिक उपनामवाले स्थविर सुस्थित और स्थविर सुप्रतिबुद्ध से
कौटिक नामक गण निकला । उसकी चार शाखायें और चार ही कुल इस प्रकार हैं । उच्चनागरी 1, विद्याधरी 12, वजी 3 और मध्यमिका 4 ये चार शाखायें और बंभलिप्त 1, वस्त्रलिप्त 2, वाणिज्य 3 और प्रश्नवाहनक 4
ये चार कुल हैं । व्याघापत्य गोत्रीय एवं कौटिक काकदिक उपनामवाले स्थविर सुस्थित और स्थविर सुप्रतिबुद्ध के ये पांच स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिद्ध थे, स्थविर आर्य इंद्रदिन्न 1, स्थविर प्रियग्रंथ 2, काश्यप गोत्रवाले स्थविर विद्याधर गोपालक 3. स्थविर ऋषिदत्त 4 और स्थविर अरिहदत्त 5 ।
यहां पर स्थविर प्रियग्रंथ का सम्बन्ध कहते हैं:- तीनसौ जिन भवन, चारसौ लौकिक प्रासाद, अठारह सौ ब्राह्मणों के घर, छत्तीस सौ बनियों के घर, नव सौ बर्गीचे, सात सौ बावडी, दो सौ कुवे और सातसौ दानशालाओं से विराजित अजमेर के नजीक सुमरपाल राजा के हर्षपुर नामक नगर में एक समय श्री प्रियग्रंथसूरि पधारे एक दिन वहां पर ब्राह्मणों ने यज्ञ में बकरा होम करना शुरू किया । तब प्रियग्रंथसूरि ने एक श्रावक को वास
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