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क्षेप देकर और वह उस बकरे पर डला कर उसे अंबिका अधिष्ठित किया । इस से बकरा आकाश में जाकर 5 बोलने लगा कि-"अरे ब्राह्मणों ! तुम मुझे बांध कर लाये हो परन्तु यदि मैं भी तुम्हारे जैसा निर्दय हो जाउं तो क्षणवार में ही तुम्हें मार डालूं । लंका के किले में क्रोधित हुए हनुमानने ज्यों राक्षसों के लिए किया था वैसे ही यदि दया बीच में न आती तो आकाश में रह कर ही मैं तुम्हारे लिए करता । हिंसा में धर्म नहीं । कहा भी है कि-'हे भरत ! पशु के शरीर में जितने रोम कूप हैं उतने हजार वर्ष तक पशुघातक नरक में जापडना हैं । यदि कोई सुवर्ण का मेरू या सारी पृथ्वी दान में देवे और दूसरा मनुष्य किसी प्राणी को जीवितदान देवे तो उनमें | जीवितदान का दाता बढ़ता है । बड़े बड़े दानों का फल भी क्षीण हो जाता है परन्तु भयभीत हुए जीव को अभयदान देनेवाले मनुष्य का पुण्य क्षीण नहीं होता ।" फिर लोगों ने कहा-तू कौन है ? अपने आत्मा को प्रगट कर । वह बोला-"मैं अग्निदेव हूं। तुम मेरे वाहनरूप इस बकरे को क्यों मारते हो? यदि धर्म की जिज्ञासा है तो यहां आये
हुए श्री प्रियग्रंथसूरि के पास जाकर शुद्ध धर्म पूछो और मानसिक शुद्धिपूर्वक उसकी आराधना करो । जैसे है बह राजाओं में चक्रवर्ती और धनुषधारियों में धनंजय-अर्जुन है त्यों सत्यवादियों में वह एक ही धुरीण हैं " । फिर ब्राह्मणों ने वैसा ही किया ।
स्थविर प्रियग्रंथ से मध्यमा शाखा निकली। काश्यप गोत्रीय स्थविर विद्याधर गोपाल से विद्याधरी शाखा निकली । काश्यप गोत्रीय आर्य इंद्रदिन्न के गौतम गोत्रीय स्थविर आर्यदिन्न शिष्य थे । गौतम गोत्रीय स्थविर
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