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________________ Shri Maharan Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandir स्थविर उत्तरबलिरसह से उत्तरबलिस्सह नामक गण निकला, उसकी चार शाखायें इस प्रकार है ! कौशांबिका, सौरितिका, कौटुंबिनी और चंदनागरी । वासिष्ट गोत्रीय स्थविर आर्य सुहस्ति के बारह स्थविर शिष्य पुत्रसमान प्रसिद्ध थे । स्थविर आर्य रोहण 1, भद्रयश 2, मेध 3, कामर्द्धि 4, सुस्थित 5. सुप्रतिबुद्ध 6, रक्षित 7, रोहगुप्त 8, ऋषिगुप्त 19, श्रीगुप्त 10, ब्रह्मा 11 और सोम 12 । इस तरह सुहस्ती के गच्छ को धारण करने वाले ये बारह शिष्य थे । काश्यप ॐ गोत्रीय स्थविर आर्य रोहण से उदेह नामक गण निकला । उसमें से चार शाखा और छह कुल निकले जो इस प्रकार हैं:- उटुंबरिका शाखा 1, मास पूरिका 2, मतिपत्रिका 3. पूर्णपत्रका 4. ये शाखायें । और पहला नागभूत, दूसरा - सोममूह तीसरा उल्लगच्छ, चौथा हस्तलिप्त, पांचवां नदिज्ज और छठवां पारिहासक । ये छह कुल हैं । हारित गोत्रीय स्थविर श्रीगुप्त से चारण नामक गण निकला । उसकी चार शाखायें और सात कुल इस प्रकार हैं:- हारितमालागारी 91. संकासिका 2, गवेधुका 3, तथा वजनागरी 4.यें शाखायें और वत्सलिज्ज और 1, प्रीतिधार्मिक 2, हालिज्ज 3.* LE पुष्पमित्रिक 4. मालिज्ज 5, आर्यवेड़क 6 और कृष्णसख 7 | ये कुल हैं । भारद्वाज गोत्रीय स्थविर भद्रयशा से उड्डवाटिक नामक गण निकला, उसकी चार शाखायें और तीन कुल इस प्रकार हैं:- चंपिजिया 2, भदिज्ज्या 2, काकदिका 3.32 8 और मेघहलिज्ज्यि 4. ये चार शाखायें हैं । भद्रयशिक 1, भद्रगुप्तिक 2 और यशोभद्र 3 ये तीन कुल हैं । स्थविर 4 कामर्द्धिसे वेसवाटिक नामक गण निकला और उसकी चार शाखायें एवं चार ही कुल इस प्रकार कहे जाते हैं: For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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