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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कल्पसूत्र हिन्दी आठवां व्याख्यान अनुवाद ||135।। ॐ कहे हैं, इस प्रकार कहते हुए रोहगुप्तने जीव, अजीव और नोजीव इत्यादि तीन राशि स्थापन की । फिर उसकी विद्याओं को अपनी विद्याओं से जीतने पर उसने छोड़ी हुई रासभी विद्या को रजोहरण से जीत कर महोत्सव पूर्वक 'गुरू महाराज के पास आकर सर्व वृत्तान्त सुनाया । तब गुरूजी ने कहाकि-'हे वत्स ! तूने उसे जीता यह अच्छा किया, परन्तु जीव, अजीव और नोजीव जो तीन राशि की प्ररूपणा की यह उत्सूत्र है, अतः इसके संबन्ध में वहां जाकर मिच्छामि दुक्कडं दे आ" । सभा में इस तरह स्थापन किये अपने मत को मैं स्वयं ही वहां जाकर अप्रमाण, न कैसे करूं ? इस प्रकार अहंकार पैदा होने से उसने वैसा नहीं किया । फिर गुरूजी ने राजसभा में उस के साथ त 6 मास तक वाद कर के अन्त में कुत्रिकापण (करियाणे वाले) से नोजीव वस्तु मांगी । वहां पर न मिलने से चवालिस सौ प्रश्न कर के उसे परास्त किया । तथापि उसने अपन आग्रह (हट) न छोड़ा, तब तंग आकर गुरूजी ने क्रोध से थूकने के पात्र में से उसके मस्तक पर भस्म डालकर उसे संघ बाहिर कर दिया । फिर उस त्रैराशिक छठवें निहनव निहनवे वैशेषिक मत प्रगट किया । यद्यपि रोहगुप्त को सूत्र में आर्य महागिरि का शिष्य कहा हुआ है, परन्तु उत्तराध्ययनं वृत्ति में श्री गुप्ताचार्य का शिष्य कहा होने को कारण हमने भी वैसे ही लिखा है । तत्व तो बहुश्रुत जानें। कुत्रिक अर्थात् तीन लोक, आपण अर्थात् दुकान । तीन लोक के अंदर की सब वस्तुएं जिस दुकान पर मिल सकती हो-उसे कुत्रिकापण कहते हैं। वैसी राजगृही नगरी में देवाधिष्ठित दुकान थी, वहाँ भी नोजीव न मिला । For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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