________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kabatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandir
नाथ प्रभु की प्रतिमा दिखलाई जिसके दर्शन से प्रतिबोधित हो उसने श्री प्रभवस्वामी के पास दीक्षा ग्रहण की । फिर प्रभवस्वामीजी श्री शय्यंभवसूरि को अपनी पाट पर स्थापन कर स्वर्ग गये ।
श्री शय्यंभवसूरि- श्रीशय्यंभवने भी सगर्भा तजी हुई अपनी स्त्री से जन्मे हुए मनक नामक पुत्र के हितार्थ • श्रीदशवकालिक सूत्र की रचना की । श्रीयशोभद्रसूरि को अपनी पाट पर स्थापित कर वे भी श्रीवीरसे अठानवें * वर्ष बाद स्वर्ग सिधारे ।
श्री यशोभद्रसूरि-वच्छगोत्रीय मनक पिता स्थवीर आर्य शय्यंभव के तुंगीकायन गोत्रीय स्थवीर आर्य यशोभद्र म शिष्य थे । श्री यशोभद्रसूरि भी श्री भद्रबाहु तथा संभूतिविजय इन दो शिष्यों को अपनी पाट पर स्थापन कर स्वर्ग गये।
श्री संभूतिविजय तथा भद्रबाहुस्वामी- अब यहां पर संक्षिप्त वाचना से स्थविरावली कहते हैं | संक्षिप्त. वाचना से आर्य यशोभद्र से आगे स्थविरावली इस प्रकार कही है । तुंगीकायन गोत्रीय स्थविर आर्य यशोभद्र के दो स्थविर शिष्य थे । एक माठर गोत्रीय स्थविर संभूतिविजय और दूसरे प्राचीन गोत्रीय स्थविर आर्य भद्रबाहु । श्री यशोभद्र की पाट पर श्री संभूतिविजय और आर्य भद्रबाहु नामक दो पट्टधर हुए । उसमें श्री भद्रबाहु का सम्बन्ध इस तरह है-प्रतिष्ठानपुर में वराहमिहिर और भद्रबाहु नामा दो ब्राह्मणों ने दीक्षा ली । उसमें भद्रबाहु को आचार्य पद देने से गुस्से होकर वराहमिहिरने ब्राह्मण का वेश धारण कर वराहसंहिता बना कर
00 गई
0000000000
1 दक्षिण का पेठण शहर
For Private and Personal Use Only