SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कल्पसूत्र आठवां हिन्दी व्याख्यान अनुवाद सा ||12911 श्रीवीर प्रभु के निर्वाण से आठ वर्ष पीछे गौतम स्वामी, वीस वर्ष पीछे सुधर्मास्वामी और चौंसठ वर्ष पीछे जम्बूस्वामी मोक्ष गये । उस वक्त दस वस्तु विच्छेद हो गई अर्थात् भारतवर्ष में से नष्ट हो गई । मनःपर्यव ज्ञान, LA 1 परमावधि-जिसके होने पर अन्तर्मुहूर्त पीछे केवलज्ञान की उत्पत्ति होती है 2 पुलाकलब्धि जिससे मुनि चक्रवर्ती के सैन्य को भी चूर्ण कर देने के लिए समर्थ होता है 3 आहारक शरीर लब्धि 4 क्षपकश्रेणि 5 उपशमश्रेणि 6 जिनकल्प 7 संयमत्रिक-परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यात चारित्र 8 केवलज्ञान 9 और मोक्ष मार्ग 10 यहां भी कवि कहता है-महामुनि जम्बूस्वामी का सौभाग्य लोकोत्तर है कि-जिस पति को प्राप्त कर के मुक्तिरूप स्त्री (भरतक्षेत्र से) अभी तक दूसरे स्वामी की इच्छा नहीं करती । श्री प्रभवस्वामी- काश्यप गोत्रीय आर्य जम्बूस्वामी के कात्यायन गोत्रीय स्थवीर आर्य प्रभव शिष्य हुए । कात्यायन गोत्रिय स्थविर आर्य प्रभाव के वच्छ गोत्रिय मनकपिता स्थविर शय्यंभव शिष्य हुए । एक दिन प्रभव मुनिने अपनी पाट पर स्थापन करने के लिए अपने गण में एवं संघ में उपयोग दिया, परन्तु वैसा योग्य पुरूष न देखने से, परतीर्थ में उपयोग देने पर राजगृह नगर में यज्ञ कराते हुए श्री शंय्यंभव भट्ट देखने में आये । फिर वहां भेजे हुए दो साधुओं ने निम्न वाक्य उच्चारण किया -"अहो कष्टमहोकष्टं तत्वं न ज्ञायते पर" अर्थात्-अहो ! यह तो कष्ट ही कष्ट है, इसमें तत्व तो कुछ मालुम नहीं होता । यह वाक्य सुन शय्यंभवने तलवार दिखाकर अपने ब्राह्मण गुरू से जोर देकर पूछा तब उसने यज्ञस्तंभ के नीचे से निकाल कर श्रीशान्ति For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy