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श्री कल्पसूत्र
आठवां
हिन्दी
व्याख्यान
अनुवाद
सा
||12911
श्रीवीर प्रभु के निर्वाण से आठ वर्ष पीछे गौतम स्वामी, वीस वर्ष पीछे सुधर्मास्वामी और चौंसठ वर्ष पीछे जम्बूस्वामी मोक्ष गये । उस वक्त दस वस्तु विच्छेद हो गई अर्थात् भारतवर्ष में से नष्ट हो गई । मनःपर्यव ज्ञान, LA 1 परमावधि-जिसके होने पर अन्तर्मुहूर्त पीछे केवलज्ञान की उत्पत्ति होती है 2 पुलाकलब्धि जिससे मुनि चक्रवर्ती के सैन्य को भी चूर्ण कर देने के लिए समर्थ होता है 3 आहारक शरीर लब्धि 4 क्षपकश्रेणि 5 उपशमश्रेणि 6 जिनकल्प 7 संयमत्रिक-परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यात चारित्र 8 केवलज्ञान 9 और मोक्ष मार्ग 10 यहां भी कवि कहता है-महामुनि जम्बूस्वामी का सौभाग्य लोकोत्तर है कि-जिस पति को प्राप्त कर के मुक्तिरूप स्त्री (भरतक्षेत्र से) अभी तक दूसरे स्वामी की इच्छा नहीं करती ।
श्री प्रभवस्वामी- काश्यप गोत्रीय आर्य जम्बूस्वामी के कात्यायन गोत्रीय स्थवीर आर्य प्रभव शिष्य हुए । कात्यायन गोत्रिय स्थविर आर्य प्रभाव के वच्छ गोत्रिय मनकपिता स्थविर शय्यंभव शिष्य हुए ।
एक दिन प्रभव मुनिने अपनी पाट पर स्थापन करने के लिए अपने गण में एवं संघ में उपयोग दिया, परन्तु वैसा योग्य पुरूष न देखने से, परतीर्थ में उपयोग देने पर राजगृह नगर में यज्ञ कराते हुए श्री शंय्यंभव भट्ट देखने में आये । फिर वहां भेजे हुए दो साधुओं ने निम्न वाक्य उच्चारण किया -"अहो कष्टमहोकष्टं तत्वं न ज्ञायते पर" अर्थात्-अहो ! यह तो कष्ट ही कष्ट है, इसमें तत्व तो कुछ मालुम नहीं होता । यह वाक्य सुन शय्यंभवने तलवार दिखाकर अपने ब्राह्मण गुरू से जोर देकर पूछा तब उसने यज्ञस्तंभ के नीचे से निकाल कर श्रीशान्ति
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