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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 筑 fife 20 www.kobatirth.org कर मोक्ष पधारे । श्री जम्बूस्वामी अग्निवेश्यायन गोत्रीय आर्य (स्थवीर) सुधर्मास्वामी के काश्यप गोत्रीय आर्य जम्बूनामक स्थविर शिष्य हुए । श्री जम्बूस्वामी का चरित्र इस तरह है- राजगृह नगर में ऋषभदत्त और धारिणी के पुत्र जम्बूकुमार ने श्री सुधर्मास्वामी के पास धर्म सुनने पूर्वक शील और सम्यक्त्व प्राप्त करेन पर भी माता पिता के दृढ आग्रह से कन्याओं से विवाह किया । परन्तु उनकी प्रेमगर्भित वाणी से मोहित न हुए। क्यों कि सम्यक्त्व और शीलरूप दो तूंबे जिनसे कि संसाररूप समुद्र तरा जा सकता है उन दो तूंबों को धारण करनेवाले जम्बूकुमार स्त्रीरूप नदी में कैसे डूब सकते थे ? विवाह की रात्रि को ही उन स्त्रियों को प्रतिबोध करते समय चोरी करने को आये हुए चारसौ निन्नाणवें परिवार वाले प्रभव को भी प्रतिबोधित किया। सुबह पांच सौ चोर, आठ स्त्रियां, उन स्त्रियों के मातापिता और अपने मातापिता के साथ स्वयं पांचसौ सत्ताईसव होकर निन्नाणवें करोड़ सुवर्ण त्याग कर जम्बूकुमार ने दीक्षा धारण की । अनुक्रम से केवली हुए, सोलह वर्ष तक गृहवास में रहे बीस वर्ष छद्मस्थावस्था में और चवालीस वर्ष केवलीपर्याय में रहकर सर्व आयु अस्सी वर्ष का पूर्ण कर और अपनी पाट पर श्री प्रभवस्वामी को स्थापन कर मोक्ष गये । यहां कवि घटना करता है कि जम्बू समान अन्य कोई कोतवाल न हुआ और न होगा, जिसने चोरों को भी मोक्षमार्गी साधु बना दिया । प्रभव प्रभु भी जयवन्त रहो जिसने बाह्य धन की चोरी करते करते अभ्यन्तर धन रत्नत्रय को चुरालिया यानि प्राप्त कर लिया । For Private and Personal Use Only 400 051 2050 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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