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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir श्री कल्पसूत्र हिन्दी आठवां व्याख्यान अनुवाद 1113011 निमित्त (जोतिष) की प्ररूपणा आदि से अपना गुजारा करना प्रारंभ किया । लोगों में कहने लगा कि - मैंने जंगल में में एक जगह शिला पर सिंह लग्न लिखा था । सोते समय मुझे याद आया कि मैंने उस लग्न को मिटाया नहीं । मैं उसी वक्त रात को ही वहां गया, परन्तु उस पर मैंने सिंह बेठा देखा । तथापि नीडर हो उसके नीचे हाथ डाल करके मैंने उस लग्न को मिटा दिया । इस से संतुष्ट हुआ सिंह लग्न का अधिपति सूर्य प्रत्यक्ष होकर मुझे अपने मंडल में ले गया । और वहां सर्व ग्रहों का सार मुझे दिखलाया । एक दिन वराहमिहिरने एक मांडला बना कर राजा से कहा कि-इस माडले के मध्य भागमें आकाश से बावन पल प्रमाणवाला एक मच्छ पड़ेगा, परन्तु भद्रबाहु स्वामिने कहा कि "अर्ध पल प्रमाण वजन उसका मार्ग में ही सूख जायगा, इससे साढ़े एकावन पल प्रमाणवाला और मध्य भाग में न पड़कर वह एक किनारे पर पड़ेगा । घटना इसी प्रकार ही हुई । अपनी बात झूठी साबित होने से वराहमिहिर का मन बड़ा दुःखित हुआ । वह दूसरा अवसर देखने लगा। एक दिन राजा के घर पुत्ररत्न का जन्म हुआ । वराहमिहिरने उसका सौ वर्ष का आयु बतलाया और लोगों में यह बात फैलाई कि भद्रबाहु तो व्यवहार को भी नहीं जानते कि जो राजा को पुत्र की बधाई देने तक भी नहीं आये । जब श्रीसंघ के आगेवानों ने यह बात श्री भद्रबाहुस्वामी से अर्ज की तब उन्होंने फरमाया कि हमें पुत्र बधाई देने जाने में कोई हर्ज नहीं है परन्तु सातवें दिन हमें पुनः शोक प्रकट करने जाना पड़ेगा इस teamf00 For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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