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सातवा
श्री कल्पसूत्र हिन्दी
व्याख्यान
अनुवाद
ॐकाश्यप ८५, बल ८६, वीर १७, शुभमति ८८, सुमति ८६, पद्मनाभ ९०, सिंह १, सुजाति ६२, संजय ६३, सुनाभ ६४, नरदेव ६५, चित्तहर ६६, सुस्वर ६७, दृढरथ ६८, दीर्घबाहु t६ और प्रभंजन १०० ।
अब राज्य या देशों के नाम निम्न प्रकार जानना चाहिये ।
अंग, बंग, कुलिंग गौड़, चौड़, कर्नाट, लाट, सौराष्ट्र, काश्मीर, सौभीर, आभीर, चीन, महाचीन, गजरात, बंगाल, श्रीमाल, नेपाल, जहाल, कौशल, मालव, सिंहल, मरूस्थल इत्यादि ।
प्रभु का दीक्षा कल्याणक अब जीत कल्पवाले लोकान्तिक देवों के इष्टवाणी द्वारा प्रभु को प्रार्थना करने पर, दीक्षा समय जान कर शेष धन गोत्रीयों को बांट दिया । वहां तक सब कुछ पूर्ववत् समझना चाहिये । जो ग्रीष्म काल का पहला मास था, पहला पक्ष था, चैत्र के कृष्णपक्ष में चैत्र वदि अष्टमी के दिन, दिन के पिछले पहर सुदर्शना नामा शिविका में बैठकर जिनके आगे देव, मनुष्यों तथा असुरों का समूह चल रहा है ऐसे प्रभु विनीता नगरी के मध्य भाग से निकल कर सिद्धार्थवान नामक उद्यान में जहां अशोक नाम वृक्ष है वहां आये । शिबिका से उतर अशोक
वृक्ष के नीचे स्वयं चार मुष्टि लोच करते हैं । चार मुष्टि लोच करने के बाद एक मुष्टि केश जब बाकी रहे तब वह - भगवान् के सुवर्ण वर्णे शरीर पर इधर उधर चिकुराते हुए ऐसे सुन्दर मालूम होने लगे कि जैसे सोने के कलश * पर नील कमलों की माला हो । उसकी सुंदरता को देख कर इंद्र महाराज ने प्रभु से प्रार्थना की कि इतने केश
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