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स्त्रियों की चौसठ कला तथा सौ प्रकार का शिल्प इन तीन वस्तुओं का प्रजा के हितार्थ प्रभुने उपदेश किया । उपदेश देकर सौ पुत्रों को सौ देश के राज्यों पर स्थापित किया । उसमें विनीता का मुख्य राज्य भरत को दिया। तथा बाहुबली को बहली देश में तक्षशिला का राज्य दिया । शेष अट्ठानवें पुत्रों के जुदे जुदे देश बांट दिये । ऋषभदेव प्रभु के सौ पुत्रों के नाम निम्न प्रकार हैं :
ख्यातकीर्ति, वरदत्त
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भरत १, बाहुबलि २, शंख ३, विश्वकर्मा ४, विमल ५, सुलक्षण ६, अमल ७, चित्रांग १०, सागर ११, यशोथर १२, अमर १३, रथवर १४, कामदेव १५, ध्रुव १६, वत्स १७, नन्द १८, सूर १६, सुनन्द २०, कुरू २१, अंग २२, बंग २३, कौशल २४, वीर २५, कलिंग २६, मागध २७, विदेह २८, संगम २६, दशार्ण ३०, गंभीर ३१, वसुवर्मा ३२, सुवर्मा ३३, राष्ट्र ३४, सौराष्ट्र ३५, बुद्धिकर ३६, विविधिकर ३७, सुयश ३८, यशास्कीर्ति ३६, यशस्कर ४०, कीर्तिकर ४१, सूरण ४२, ब्रह्मसेन ४३, विक्रान्त ४४, नरोत्तम ४५, पुरूषोत्तम ४६, चंद्रसेन ४७, महासेन ४८, नभः सेन ४६, भानु ५०, सुकान्त ५१, पुष्पयुत ५२, श्रीधर ५३, दुर्द्धर्ष ५४, सुसुमार ५५, दुर्जय ५६, अजेयमान ५७, सुधर्मा ५८, धर्मसेन । ५६, आनन्दन ६०, आनन्द ६१, नन्द ६२, अपराजित ६३, विश्वसेन ६४, हरिषेण ६५, जय ६६, विजय ६७, विजयन्त' ६८, प्रभाकरं ६६, अरिदमन ७०, मान ७१, महाबाहु ७२, मेघ ७३, सुघोष ७४ विश्व ७५, वराह ७६, सुसेन ७७, शैलविचारी ८० अ रिजय ८१, कुंजरबल ८२, जयदेव ८२, नागदत्त ८४
सेनापति ७८, कपिल ७६,
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