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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
सातवां
व्याख्यान
अनुवाद
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स्त्री की ६४ कला एक स्त्रियों की चौसठ कला निम्न प्रकार हैं:- नृत्य १, औचित्य २, चित्र ३, वादित्र ४, मंत्र ५, तंत्र ६, धनवृष्टि ७,5 । फलाकृष्टि ८, संस्कृतवाणी ६, क्रियाफल १०, ज्ञान ११, विज्ञान १२, दंभ १३, अंबुस्तंभ १४, गीतमान १५, तालमान १६,
आकारगोपन १७, आरामरोपण १८, काव्यशक्ति १६, वक्रोक्ति २०, नरलक्षण २१, गजपरीक्षा २२, अश्वपरीक्षा २३,वास्तुशुद्धि २४, लघुबुद्धि २५, शकुनविचार २६, धर्माचार २७, अंजन योग २८, चूर्णयोग २६, गृहिधर्म ३० सुप्रसादन कर्म ३१, कनकसिद्धि ३२, वर्णिकावृद्धि ३३, वाक्पाटव ३४, करलाघव ३५, ललितचरण ३६, तैलसूरभिता करण ३७, भृत्योपचार ३८, गेहाचार ३६, व्याकरण ४०, परनिराकरण ४१, वीणावादन ४२, वितंडावाद ४३, अंकस्थिति ४४, जनाचार ४५, कुंभक्रम ४६, सारिश्रम ४७, रत्नमणिभेद ४८, लिपिपरिच्छेद ४६, वैद्यक्रिया ५०, कामाविष्करण ५१, रंधन ५२, रसोई ५३, चिकुरबंध ५४, मुखमंडन ५५, कथाकथन ५६, कुसुमग्रंथन ५७, सर्वभाषाविशेष ५८, भोज्य ५६, यथास्थान आभरण थारण ६०, अंत्याक्षरिका ६१, प्रश्नप्रहेलिका ६२, शालिखंडन ६३ और वाणिज्य ६४ । इत्यादि ये स्त्रियों की कलायें हैं ।
कर्म से खेति, वाणिज्यादि और कुंभार आदि के प्रथम कथन किये कर्म सो शिल्प समझना चाहिये । इन शिल्पों का प्रभुने उपदेश किया । इसका तात्पर्य यह हैं कि जो बातें आचार्य अर्थात् गुरूद्वारा सिखी जाती है - उनका नाम शिल्प है और जो बातें काम करते करते आ जाती है उनका नाम कर्म है । पुरूष के बहत्तर और
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