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हैं कात्यायन १४, निघंटु, १५, गजारोहण १६, तुरगारोहण १७, उन दोनों की शिक्षा १८, शास्त्राभ्यास १६, रस २०, मंत्र, 5२१, यंत्र २२, विष २३, खन्य २४, गंधवाद २५, संस्कृत २६, प्राकृत २७, पैशाचिकी २८, अपभ्रंश २६, स्मृति ३०,
पुराण ३१, उसका विधि ३२, सिद्धान्त ३३, तर्क ३४, वैदक ३५, वेद ३६, आगम ३७, संहिता ३८, इतिहास ३६,A
सामुद्रिक ४०, विज्ञान ४१, आचार्यक विद्या ४२, रसायन ४३, कपट ४४, विद्यानुवाद के दर्शन ४५, संस्कार ४६, . #तसंबलक ४७, मणिकर्म ४८, तरूचिकित्सा ४६, खेचरीकला ५०, अमरीकला ५१, इंद्रजाल ५२, पातालसिद्धि ५३, नियंत्रक ५४, रसवती ५५, सर्वकरणी ५६, प्रासादलक्षण ५७, पण ५८, चित्रोपल ५६, लेप ६०, चर्मकर्म ६१, पत्रछेद ६२,
नखछेद ६३, पत्रपरीक्षा ६४, वशीकरण ६५, काष्ठघटन ६६, देश भाषा ६७, गारूड़ ६८, योगांग ६६, थातुकर्म ७०, केवलिविधि ७१, और शकुनरूत ७२, ये पुरूष की बहत्तर कलायें समझनी चाहिये ।।
इसमें लेखन-लिखित हंस लिपि आदि अठारह प्रकार की लिपि समझनी चाहिये । उनका विधान प्रभुने दाहिने हाथ से ब्राह्मी को सिखलाया था । तथा एक, दश, सौ, हजार, अयुत-दश हजार, लाख, प्रयुत, (दश लाख) कोटि, अर्बुद,-(दश कोटि) अब्ज, खर्व, निखर्व, महापद्म, शंकू, जलधि, अन्त्य, मध्य और पशर्ध । इस प्रकार अनुक्रम से दश दश गुणी संख्यावाला गणित बांये हाथ से प्रभु ने सुन्दरी को सिखलाया । भरत को काष्ठ कर्मादि कर्म और बाहुबलि को पुरुषादि के लक्षण सिखलाये ।
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