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सागर का अन्तर है; पश्चात् ६८० वर्षे सिद्धान्त लिखे गये का अंतर हैं; तदनन्तर ५० वर्षे सिद्धांत लिखे गये ।
२२. श्रीअजितनाथजी और श्रीमहावीर स्वामी के ४२५ २०. श्रीअभिनन्दन स्वामी और महावीर स्वामी के | हजार ३ वर्ष || मास कम ५० लाख क्रोड सागर का अन्तर ४२ हजार ३ वर्ष ८ मास कम १० लाख क्रोड सागर का | है; पश्चात् ६८० वर्षे सिद्धान्त लिखे गये । अन्तर है; पश्चात् ६८० वर्षे सिद्धान्त लिखे गये ।
२३. श्रीऋषभदेव स्वामी और महावीर प्रभु के ४२ २१. श्रीसम्भवनाथजी और श्रीमहावीर स्वामी के ४२ | हजार ३ वर्ष र || मास कम एक कोड़ कोड़ी सागर का अंतर हजार ३ वर्ष ८ ।। मास कम २० लाख क्रोड सागर है; तत्पश्चात् ६८० वर्षे सिद्धांत पुस्कारूढ हुवे । इस तरह चौबीस तीर्थंकरों का अन्तर काल समाप्त हुआ।
श्री ऋषभदेव भगवान का जीवन चरित्र उस काल और उस समय में अयोध्या नगरी में जन्मे हुए अर्हन् श्रीऋषभदेव प्रभु के चार कल्याणक उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में हुए हैं और पांचवां कल्याणक अभिजित नक्षत्र में हुआ है सो इस प्रकार है-उत्तराषाढ़ा
नक्षत्र से स्वर्ग से च्यवकर प्रभु गर्भ में आये, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जन्म हुआ, उत्तराषाढ़ा में दीक्षा ली तथा * उत्तराषाढ़ा में ही केवलज्ञान पाये और अभिजित नक्षत्र में प्रभु का निर्वाण हुआ ।
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