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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद ||113 || 404040500400 www.kobatirth.org अवसर्पिणी में दुषमसुषमा नामक चौथा आरा बहुत बीत जाने पर, ग्रीष्मकाल के चौथे महीने में, आठवें पक्ष में अर्थात् 'आषाढ़ शुक्ला अष्टमी के दिन गिरनार पर्वत के शिखर पर पांचसौ छत्तीस साधुओं सहित, चौविहार एक मास का अनशन कर के चित्रा नक्षत्र में चंद्र योग प्राप्त होने पर मध्यरात्रि के समय पद्मासन से बैठे हुए मोक्ष सिधारे । यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए । अब श्रीनेमिनिर्वाण से कितने समय बाद पुस्तक लेखनादि हुआ सो बतलाते हैं । अर्हन् श्रीअरिष्टनेमि निर्वाण पाये यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए । उन्हें चोरासी हजार वर्ष बीतने पर पचासी हजारवें वर्ष के नवसौ वर्ष बीते बाद दशवें सैके का यह अस्सीवां वर्ष जाता है । अर्थात् श्री नेमिनाथ के निर्वाण बाद चौरासी हजार वर्ष पीछे वीर प्रभु का निर्वाण हुआ और तिरासी हजार सातसौ पचास वर्ष पर श्रीपार्श्वनाथ निर्वाण हुआ यह अपनी बुद्धि से जान लेना चाहिये । इस प्रकार श्रीनेमिचरित्र पूर्ण हुआ । तीर्थकर भगवन्तों का अन्तरकाल १. श्रीपार्श्वनाथस्वामी के निर्वाण के बाद २५० वर्षे श्रीमहावीर देव का निर्वाण हुवा बाद ६८० वर्षे सिद्धान्त लिखे गये । २. श्रीनेमिनाथजी और श्रीमहावीरस्वामी के ८४ हजार वर्ष का अन्तर है, बाद १८० वर्षे सिद्धान्त लिखे गये । For Private and Personal Use Only 405014050040504100 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सातवां व्याख्यान
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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