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प्रभु के मुखकमल से प्रगट हुए पवनद्वारा पांचजन्य शंख की आवाज से वासुदेव के हाथीयों का समूह अपने - बन्धन स्तंभों को उखेड़कर घरों की पंक्तियों को तोडता हुआ भागने लगा । तथा वासुदेव के घोड़े भी तुरन्त ही अपने बन्धन तोड़ कर अश्वशाला से भागने लगे । उस वक्त उस शंखनाद से सारा शहर अति व्याकुलता के साथ बहरा सा. हो गया । इस प्रकार के शंखनाद को सुनकर 'आज कोई शत्र पैदा हो गया है' ऐसे विचार से व्याकुल चित्तवाले
श्रीकृष्ण महाराज तुरन्त ही आयुधशाला में आये । वहां पर नेमिनाथ प्रभु को देखकर मन में आश्चर्य मनाते हुए अपनी LA भुजा के बल की तुलना करने के लिए श्रीकृष्ण महाराज ने प्रभु से कहा-हम दोनों अपने बल की परीक्षा करें । यों कह LC
कर प्रभु को साथ ले वे मल्ल अखाड़े में आये । वहां पर प्रभु ने श्रीकृष्ण महाराज को कहा-हे भाई ! धुल में आलोट कर बल की परीक्षा करना अनुचित है । बल की परीक्षा करने के लिए तो आपस में एक दूसरे की भुजा का मोड़ना
ही काफी है । दोनों ने यह बात मंजूर कर ली । प्रथम श्रीकृष्ण महाराज ने अपना हाथ पसारा । प्रभु नेमिने उस हाथ Fको बैंत के या कमलनाल के समान तुरन्त ही मोड़ दिया। फिर प्रभु ने अपना हाथ लंबा किया । कृष्ण से जब जोर
लगाने पर भी प्रभु का हाथ न मुड़ा तब हाथ पर श्रीकृष्ण ऐसे लटक गये जैसे कोई वृक्ष की शाखा पर बंदर लटकता ४ हो, उस वक्त खेद से मुख पर आई हुई दुगुनी श्यामता से हरिने यथार्थ ही अपना नाम हरि के (बन्दर के)
समान कर दिया । जब अत्यन्त जोर लगाने पर भी प्रभु का हाथ जरा भी न मुड़ा तब मन में चिन्तातुर हो
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