________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir
श्री कल्पसूत्र हिन्दी
सातवा
व्याख्यान
अनुवाद
||10611
* कृष्ण महाराज विचारने लगे-यह नेमिकुमार तो सुखपूर्वक मेरा राज्य ले लेवेगा ! सचमुच ही स्थूल बुद्धिवाले मूर्ख है 1. मनुष्य केवल कष्ट के ही भागीदार बनते हैं और फल बुद्धिमान् ले लेते हैं । जैसे कि समुद्र का मंथन तो किया प्रशंकरजी ने और उससे प्राप्त हुए रत्न देवों ने ले लिये । देखो खाद्य पदार्थ को चबा चबा कर कष्ट से रसदार तो दांत बनाते है और जीभ सहज में ही सटक लेती है।
प्रभु को विवाह मंजूर कराने के लिए गोपीयों का प्रयत्न । फिर श्री कृष्ण बलभद्र के साथ विचार करने लगे कि "अब हमे क्या करना चाहिये ? राज्य की इच्छावाला - एनेमिकुमार तो बहुत बलवान् है" इतने ही में आकाशवाणी हुई- हे हरे ! पूर्व में श्री नेमिनाथ प्रभु ने कहा हुआ
है कि बाईसवां तीर्थंकर नेमि नामक कुमार अवस्था में ही दीक्षा ले लेगा,' इस देववाणी को सुन कर श्री कृष्ण
निश्चिन्त हुए । तथापि निश्चयार्थ नेमिनाथप्रभु को साथ ले जलक्रीडा करने के लिए अपनी रानियों सहित * तालाब पर गये । वहां प्रेम से नेमिकुमार का हाथ पकड़कर कृष्ण ने तुरन्त ही तालाब पर गये । वहां प्रेम से
नेमिकुमार का हाथ पकड़कर कृष्ण ने तुरन्त ही तालाब में प्रवेश किया । वहां नेमिनाथप्रभु को केशर का एरंगवाला पानी सुवर्ण की पिचकारियों में भर कर सिंचित करने लगे । रुक्मिणी आदि गोपियों को कृष्ण ने
पहले से ही कहा हुआ था कि नेमिकुमार के साथ निःशंकतया क्रीड़ा करके उसे विवाह कि लिए तैयार करना । फिर उन गोपियों में से कितनी एक प्रभु पर केशरी उत्तम जलसमूह फेंकने लगी । कितनी एक सुन्दर पुष्पसमूह की गेंद बना कर प्रभु की छाती पर मारने लगी। कई एक उन्हें तीक्ष्ण कटाक्षों के बाणों
For Private and Personal Use Only