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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
अनुवाद
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तथा हमारे इस कुमार का नाम अरिष्टनेमि हो, इस तरह कथन किया गया ।
प्रभु जब गर्भ में थे तब माता ने स्वप्न में अरिष्ट रत्नमय चक्र की धार देखी थी इसी से प्रभु का अरिष्टनेमि नाम रक्खा गया। अरिष्ट में आदि का अमंगल दूर करने के लिये है, क्योंकि रिष्ट शब्द अमंगलवाची है । अरिष्टनेमि विवाहित न होने के कारण कुमार कहलाते हैं । वे विवाहित नहीं हुए सो प्रकरण इस प्रकार है । एक दिन शिवादेवी माता ने प्रभु को युवावस्था प्राप्त देख कर कहा- हे वत्स! तू विवाह मंजूर करके हमारे मनोरथ पूर्ण कर । प्रभु ने कहा- माताजी ! जब योग्य कन्या मिलेगी तब विवाह करूंगा ।
भगवान का अतुल पराक्रम ।
एक दिन कौतुक रहित होने पर भी प्रभु मित्रकुमारों से प्रेरित हो क्रीड़ा करते हुए वासुदेव की आयुध (शस्त्र) शाळा में चले गये । वहां पर कुतहूल देखने की इच्छावाले मित्रों के आग्रह से उन्होंने वासुदेव का सुदर्शन चक्र उठा लिया और अंगुली के अग्रभाग पर कुंभार के चाक के समान उसे घुमाया। शार्ङ्ग धनुष्य भी कमलनाल के समान नमा दिया । कौमोदिकी नामा गदा को भी एक लकड़ी के तुल्य उठा लिया । तथा पांचजन्य शंख को उठा कर उसे मुख से लगा उस में जोर से फूंक मारी ।
वासुदेव के प्रत्येक रत्न का ऐसा प्रभाव है कि उसकी हजार-हजार देवता रक्षा करते । उन्हें उठाना तो दूर रहा. उनके नजदीक भी कोई नहीं आ सकता। मगर भगवान् तो अनंत शक्तिवाले थे इसलिये उनके लिये कोई असम्भव वान नहीं थी।
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सातवां
व्याख्यान
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